Thursday, December 4, 2014
श्रीमदभगवद्गीता के 5151 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर
परमपूज्य सरसंघचालक ने किया सबको अपनत्व देने का आह्वान
नई दिल्ली. जियो गीता परिवार तथा दिल्ली की धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं द्वारा यहां लाल किला मैदान में शुरू होने जा रहे गीता प्रेरणा महोत्सव के लिये भूमि पूजन किया गया. श्रीमदभगवद्गीता के 5151 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर 7 दिसंबर तक चलने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का विधिवत प्रारम्भ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालाक डॉ. मोहन जी भागवत द्वारा लाल किला मैदान पर 2 दिसंबर को किया गया.
परमपूज्य सरसंघचालक ने गीता के आलोक में जाति, पंथ, सम्प्रदाय, भाषा और प्रांत भेद को छोड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि इन सबको छोड़ कर उस परमात्मा के प्रकाश में सबको अपनत्व देना चाहिये जो एक से अनेक बना है.
डॉ. भागवत ने कहा, “ गीता के प्रसिद्ध वाक्यों में से दो का आचरण भी हमने किया तो हमारा और दुनिया का जीवन बदल जायेगा. पहली बात भगवान कृष्ण ने बताई कि ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ यानी जो भी काम तुम्हारा है, उसको सत्यम, शिवम्, सुन्दरम उत्तम करना. किसी भी कार्य को व्यवस्थित किया जाता है, समय पर किया जाता है, सुन्दर रीति से किया जाता है. सबको अच्छा लगे ऐसे किया जाता है और उसका पूरा परिणाम मिले, इतना किया जाता है, वह योग है”.
“गीता में दूसरी महत्वपूर्ण बात कही गयी है- समत्वं योग उच्यते. सम रहो, संतुलित रहो, किसी एक ओर मत झुको, क्योंकि सब तुम्हारे हैं और कोई तुम्हारा नहीं है, वह आत्मा है, सर्वव्यापी है. सब समान हैं और सब में आप हैं. जात-पात, पंथ-सम्प्रदाय, भाषा-प्रांत यह सब छोड़ो. एक ही अनेक बना है. उस एकता के प्रकाश में सबको अपनत्व दो. यह जानकर रहो कि यह सब यहीं रहने वाले हैं, तुम स्वतन्त्र हो, अलग हो, स्वायत्त हो, तुम चले जाने वाले हो, इसलिये मोह में मत पड़ो. अनभिः स्नेह, ऐसा शब्द है गीता में. यह विषेश स्नेह मत करो, यह मोह होता है, पक्षपात होता है. स्नेह करो, अधिक स्नेह मत करो. अनभिस्नेही बनो”.
“सबको समान देखते हुये, आत्म सर्वभूतेषु मानते हुये, कर्म और कर्तव्य करो. तुम्हारा कर्तव्य और कर्म लोक-संग्रह के लिये होना चाहिये., शरीर, मन और बुद्धि के पीछे भागने वाला, जीवन के सुखों में लोभ-लालच यह अज्ञान है. सावधान रहकर, यह जानकर, कि तुम वह लालची नहीं हो, तुम सब यह प्राप्त कर्तव्य के नाते कर रहे हो, तुम आत्मा से, मन से इससे अलिप्त रहो”.
“तीसरी बात प्रसिद्ध है कि जो करते हो उसके परिणाम की मत सोचो. सबके साथ समदृष्टि रखकर, अपना कर्तव्य तुम कुशलतापूर्वक करते हो, उसका परिणाम या अपेक्षित परिणाम क्या होता है, यह बिलकुल मत सोचो, क्योंकि यह किसी के हाथ में नहीं. फ्लाइट जाने के लिये तैयार हो गयी, कोहरा आ गया, एक दो घण्टे के लिये, आप सबको अनुभव होगा इसका, इसमें दोष किसका, सबने अपना काम ठीक किया, लेकिन कोहरा आ गया. यह कौन तय कर सकता है? यह दुनिया का नियम है, दुनिया में यह होता रहता है, सब बाते तुम्हारे हाथ में नहीं रहतीं. तुम क्यों फल की आशा करते हो? कार्य अपने हाथ में है, फल प्रभु हाथ में”.
“इसलिये गीता का संदेश है कि इन सब बातों को मन में स्थिर रखने के लिये, एकान्त में साधना करो. सत्य की साधना करो. सत्य की साधना करते चले जाओ-करते चले जाओ. और लोकान्त में यानि जगत में, बाहर के जीवन में फल की अपेक्षा किये बिना परोपकार और सेवा की भावना से निष्काम पुरुषार्थ करो. यह परिस्थिति के उतार-चढ़ाव में कभी विषम नहीं होता, संतुलन डिगता नहीं. मोह, आकर्षणों और विकृतियों में वह भटकता नहीं. ऐसे धीर पुरुष बनो. इसलिये लौकिक जीवन में उसको यश मिले या न मिले. सारी दुनिया को सही रास्ते पर चलने के लिये प्रकाश देने वाले दीप-स्तम्भ की भांति उसका जीवन रहे. उसके लौकिक जीवन को जन्म-जन्मान्तर लोग याद करते रहें. हमारे देश की स्वतन्त्रता के लिये 1857 से भी पहले 1833 में प्रयास शुरू हुआ था. लेकिन सफलता तो 1947 में ही मिली. इतने लम्बे समय में भगत सिंह को क्या कहेंगे, क्या उनको यश मिला? उनके लौकिक जीवन के यश की स्केल पट्टी पर लोग कहेंगे कि भगत सिंह ने बलिदान तो किया पर यशस्वी नहीं हुये. लेकिन भगत सिंह के लिये यश और अपयश क्या है और हमारे लिये भगत सिंह का यश और अपयश क्या है. उसका जीवन हमारे लिये सब जीवनों को मार्गदर्शन करने वाला एक दीप स्तम्भ है. हमारे इन सब क्रांतिकारियों में अनेक के हाथ में तो फांसी के फंदे पर झूलते समय हाथ में गीता थी”.
गीता जयंती पर होने वाले कार्यक्रमों का परिचय देते हुए श्री ज्ञानानन्द जी ने बताया कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी एक ऐसी पावन तिथि है जो पूरे विश्व के लिये वंदनीय तिथि बन गयी है. मोक्षदा एकादशी इसी पावन तिथि को युद्ध भूमि में दोनों सेनाओं के बीच अर्जुन को निमित्त बनाकर सम्पूर्ण मानव मात्र, प्राणी मात्र के लिये गीता का दिव्य उपदेश हुआ. वह दिन आज का है.
श्री ज्ञानानन्द जी ने कहा कि आज ऐतिहासिक दिन है क्योंकि आज भगवदगीता के 5151 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस ऐतिहासिक अवसर का यह ऐतिहासिक स्थल लाल किला ऐतिहासिक वैश्विक प्रेरणा का साक्षी बना. उन्होंने कहा कि गीता प्रेरणा महोत्सव 7 दिसंबर को इसलिये यहां मनाया जायेगा क्योंकि श्री गीता जयंती के दिन अनेक संस्थाओं के अनेक स्थानों पर कार्यक्रम भी होते हैं. लेकिन ऐसा भी एक निश्चय हुआ कि श्री गीता जयंती के दिन विभिन्न नगरों में गीता जी की सम्मान यात्रायें निकलें, सब अपने अपने नगरों में श्री गीता जयंती के कुछ कार्यक्रम करें. हमने भी अपनी गुरुभूमि अम्बाला में तथा उसके पश्चात प्रातः काल ज्योतिसर से लेकर करनाल फिर पानीपत में एक विशाल गीता जी की सम्मान यात्रा निकाली और ऐसा प्रत्येक नगर में एक संदेश दिया गया.
उन्होंने कहा कि आज सैकड़ों स्थानों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में गीताजी की सम्मान यात्रायें निकल रही हैं. उन्होंने यह भी बताया कि 6 तारीख को युवा और बाल चेतना के लिये युवा चेतना के कार्यक्रम युवान आयोजित किये जायेंगे. जिसमें युवाओं को युवा ऊर्जा, नशा मुक्त समाज, राष्ट्र निर्माण, स्वच्छता अभियान, माता-पिता बुजुर्गों के सम्मान की प्रेरणा युवाओं को दी जायेगी.
इसी क्रम में 7 दिसंबर को लाल किला मैदान में राष्ट्र के प्रबुद्ध संत चेतना प्रेरणा देने के लिये उपस्थित होंगे, इसमें राष्ट्र के प्रमुख प्रबुद्ध लोग सम्मिलित रहेंगे. जिसमें यह संदेश दिया जायेगा कि गीता केवल ऐसा ग्रंथ नहीं है जो केवल पूजा के लिये है, अथवा मृत्यु के समय इसका अठ्ठारहवां अध्याय व्यक्ति को सुनाया जाये, बल्कि गीता घर-घर की शोभा बने, हर हृदय की शोभा बने, जीवन में इसको उतारा जाये, हर विद्यालय में, कार्यालय, चिकित्सालय में, न्यायालय में यह गीता पहुंचे. ऐसी आज हर क्षेत्र को आवश्यकता है. इस अवसर पर संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार जी ने गीता जयंती पर देश भर में होने वाले विभिन्न आयोजनों की जानकारी देते हुए कहा की इनसे गीता के मूल्यों की जनमानस में स्थापना होगी.
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