Friday, December 5, 2014
RSS Sarsanghchalak Dr. Mohan Rao Bhagwat expresses deep condolences Eminent Jurist Justice VR Krishna Iyer passes away in Kochi,
With the passing away of Justice V. R. Krishna Iyer we have lost a great jurist, who had made seminal contributions to turn our judicial system into a vehicle of social justice. A great humanist, he will ever be remembered for the gifts he had made to improve the quality of our social life. It was only recently I had an opportunity of meeting him, which was an invigorating experience for me. What appealed me the most was his sense of purpose and unadulterated love for all, An erudite scholar, he was content with simple ostentatious living. I send my heart-felt condolences to his family and all those who loved and adored him.
Vagish Issar (Ivsk Delhi) 09810068474
(sarve bhavantu sukhinah, sarve santu niramaya;
sarve bhadrani pashyantu, ma kashchit dukkh bhagbhavet}
Thursday, December 4, 2014

श्रीमदभगवद्गीता के 5151 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर
परमपूज्य सरसंघचालक ने किया सबको अपनत्व देने का आह्वान
नई दिल्ली. जियो गीता परिवार तथा दिल्ली की धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं द्वारा यहां लाल किला मैदान में शुरू होने जा रहे गीता प्रेरणा महोत्सव के लिये भूमि पूजन किया गया. श्रीमदभगवद्गीता के 5151 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर 7 दिसंबर तक चलने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का विधिवत प्रारम्भ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालाक डॉ. मोहन जी भागवत द्वारा लाल किला मैदान पर 2 दिसंबर को किया गया.
परमपूज्य सरसंघचालक ने गीता के आलोक में जाति, पंथ, सम्प्रदाय, भाषा और प्रांत भेद को छोड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि इन सबको छोड़ कर उस परमात्मा के प्रकाश में सबको अपनत्व देना चाहिये जो एक से अनेक बना है.
डॉ. भागवत ने कहा, “ गीता के प्रसिद्ध वाक्यों में से दो का आचरण भी हमने किया तो हमारा और दुनिया का जीवन बदल जायेगा. पहली बात भगवान कृष्ण ने बताई कि ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ यानी जो भी काम तुम्हारा है, उसको सत्यम, शिवम्, सुन्दरम उत्तम करना. किसी भी कार्य को व्यवस्थित किया जाता है, समय पर किया जाता है, सुन्दर रीति से किया जाता है. सबको अच्छा लगे ऐसे किया जाता है और उसका पूरा परिणाम मिले, इतना किया जाता है, वह योग है”.
“गीता में दूसरी महत्वपूर्ण बात कही गयी है- समत्वं योग उच्यते. सम रहो, संतुलित रहो, किसी एक ओर मत झुको, क्योंकि सब तुम्हारे हैं और कोई तुम्हारा नहीं है, वह आत्मा है, सर्वव्यापी है. सब समान हैं और सब में आप हैं. जात-पात, पंथ-सम्प्रदाय, भाषा-प्रांत यह सब छोड़ो. एक ही अनेक बना है. उस एकता के प्रकाश में सबको अपनत्व दो. यह जानकर रहो कि यह सब यहीं रहने वाले हैं, तुम स्वतन्त्र हो, अलग हो, स्वायत्त हो, तुम चले जाने वाले हो, इसलिये मोह में मत पड़ो. अनभिः स्नेह, ऐसा शब्द है गीता में. यह विषेश स्नेह मत करो, यह मोह होता है, पक्षपात होता है. स्नेह करो, अधिक स्नेह मत करो. अनभिस्नेही बनो”.
“सबको समान देखते हुये, आत्म सर्वभूतेषु मानते हुये, कर्म और कर्तव्य करो. तुम्हारा कर्तव्य और कर्म लोक-संग्रह के लिये होना चाहिये., शरीर, मन और बुद्धि के पीछे भागने वाला, जीवन के सुखों में लोभ-लालच यह अज्ञान है. सावधान रहकर, यह जानकर, कि तुम वह लालची नहीं हो, तुम सब यह प्राप्त कर्तव्य के नाते कर रहे हो, तुम आत्मा से, मन से इससे अलिप्त रहो”.
“तीसरी बात प्रसिद्ध है कि जो करते हो उसके परिणाम की मत सोचो. सबके साथ समदृष्टि रखकर, अपना कर्तव्य तुम कुशलतापूर्वक करते हो, उसका परिणाम या अपेक्षित परिणाम क्या होता है, यह बिलकुल मत सोचो, क्योंकि यह किसी के हाथ में नहीं. फ्लाइट जाने के लिये तैयार हो गयी, कोहरा आ गया, एक दो घण्टे के लिये, आप सबको अनुभव होगा इसका, इसमें दोष किसका, सबने अपना काम ठीक किया, लेकिन कोहरा आ गया. यह कौन तय कर सकता है? यह दुनिया का नियम है, दुनिया में यह होता रहता है, सब बाते तुम्हारे हाथ में नहीं रहतीं. तुम क्यों फल की आशा करते हो? कार्य अपने हाथ में है, फल प्रभु हाथ में”.
“इसलिये गीता का संदेश है कि इन सब बातों को मन में स्थिर रखने के लिये, एकान्त में साधना करो. सत्य की साधना करो. सत्य की साधना करते चले जाओ-करते चले जाओ. और लोकान्त में यानि जगत में, बाहर के जीवन में फल की अपेक्षा किये बिना परोपकार और सेवा की भावना से निष्काम पुरुषार्थ करो. यह परिस्थिति के उतार-चढ़ाव में कभी विषम नहीं होता, संतुलन डिगता नहीं. मोह, आकर्षणों और विकृतियों में वह भटकता नहीं. ऐसे धीर पुरुष बनो. इसलिये लौकिक जीवन में उसको यश मिले या न मिले. सारी दुनिया को सही रास्ते पर चलने के लिये प्रकाश देने वाले दीप-स्तम्भ की भांति उसका जीवन रहे. उसके लौकिक जीवन को जन्म-जन्मान्तर लोग याद करते रहें. हमारे देश की स्वतन्त्रता के लिये 1857 से भी पहले 1833 में प्रयास शुरू हुआ था. लेकिन सफलता तो 1947 में ही मिली. इतने लम्बे समय में भगत सिंह को क्या कहेंगे, क्या उनको यश मिला? उनके लौकिक जीवन के यश की स्केल पट्टी पर लोग कहेंगे कि भगत सिंह ने बलिदान तो किया पर यशस्वी नहीं हुये. लेकिन भगत सिंह के लिये यश और अपयश क्या है और हमारे लिये भगत सिंह का यश और अपयश क्या है. उसका जीवन हमारे लिये सब जीवनों को मार्गदर्शन करने वाला एक दीप स्तम्भ है. हमारे इन सब क्रांतिकारियों में अनेक के हाथ में तो फांसी के फंदे पर झूलते समय हाथ में गीता थी”.
गीता जयंती पर होने वाले कार्यक्रमों का परिचय देते हुए श्री ज्ञानानन्द जी ने बताया कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी एक ऐसी पावन तिथि है जो पूरे विश्व के लिये वंदनीय तिथि बन गयी है. मोक्षदा एकादशी इसी पावन तिथि को युद्ध भूमि में दोनों सेनाओं के बीच अर्जुन को निमित्त बनाकर सम्पूर्ण मानव मात्र, प्राणी मात्र के लिये गीता का दिव्य उपदेश हुआ. वह दिन आज का है.
श्री ज्ञानानन्द जी ने कहा कि आज ऐतिहासिक दिन है क्योंकि आज भगवदगीता के 5151 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस ऐतिहासिक अवसर का यह ऐतिहासिक स्थल लाल किला ऐतिहासिक वैश्विक प्रेरणा का साक्षी बना. उन्होंने कहा कि गीता प्रेरणा महोत्सव 7 दिसंबर को इसलिये यहां मनाया जायेगा क्योंकि श्री गीता जयंती के दिन अनेक संस्थाओं के अनेक स्थानों पर कार्यक्रम भी होते हैं. लेकिन ऐसा भी एक निश्चय हुआ कि श्री गीता जयंती के दिन विभिन्न नगरों में गीता जी की सम्मान यात्रायें निकलें, सब अपने अपने नगरों में श्री गीता जयंती के कुछ कार्यक्रम करें. हमने भी अपनी गुरुभूमि अम्बाला में तथा उसके पश्चात प्रातः काल ज्योतिसर से लेकर करनाल फिर पानीपत में एक विशाल गीता जी की सम्मान यात्रा निकाली और ऐसा प्रत्येक नगर में एक संदेश दिया गया.
उन्होंने कहा कि आज सैकड़ों स्थानों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में गीताजी की सम्मान यात्रायें निकल रही हैं. उन्होंने यह भी बताया कि 6 तारीख को युवा और बाल चेतना के लिये युवा चेतना के कार्यक्रम युवान आयोजित किये जायेंगे. जिसमें युवाओं को युवा ऊर्जा, नशा मुक्त समाज, राष्ट्र निर्माण, स्वच्छता अभियान, माता-पिता बुजुर्गों के सम्मान की प्रेरणा युवाओं को दी जायेगी.
इसी क्रम में 7 दिसंबर को लाल किला मैदान में राष्ट्र के प्रबुद्ध संत चेतना प्रेरणा देने के लिये उपस्थित होंगे, इसमें राष्ट्र के प्रमुख प्रबुद्ध लोग सम्मिलित रहेंगे. जिसमें यह संदेश दिया जायेगा कि गीता केवल ऐसा ग्रंथ नहीं है जो केवल पूजा के लिये है, अथवा मृत्यु के समय इसका अठ्ठारहवां अध्याय व्यक्ति को सुनाया जाये, बल्कि गीता घर-घर की शोभा बने, हर हृदय की शोभा बने, जीवन में इसको उतारा जाये, हर विद्यालय में, कार्यालय, चिकित्सालय में, न्यायालय में यह गीता पहुंचे. ऐसी आज हर क्षेत्र को आवश्यकता है. इस अवसर पर संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार जी ने गीता जयंती पर देश भर में होने वाले विभिन्न आयोजनों की जानकारी देते हुए कहा की इनसे गीता के मूल्यों की जनमानस में स्थापना होगी.
Wednesday, November 12, 2014


Tuesday, November 11, 2014
RSS-Vagish Issar: Tumakuru, Karnataka November 11: Dr Shivakumar Swa...
RSS-Vagish Issar: Tumakuru, Karnataka November 11: Dr Shivakumar Swa...: Tumakuru, Karnataka November 11: Dr Shivakumar Swamiji of Siddaganga Matha along with RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat inaugurated...



Wednesday, November 5, 2014

Monday, September 29, 2014



Tuesday, September 23, 2014
Friday, September 19, 2014
चीन के राष्ट्रपति का भारत में आगमन--- डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
पहली ख़बर - सत्रह सितम्बर को चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग भारत में आ गये । दूसरी ख़बर- उससे एक दो दिन पहले चीन की सेना के सैनिक लद्दाख में भारतीय सीमा में घुस आये । तीसरी ख़बर- सत्रह सितम्बर को ही अपने देश की आज़ादी के संघर्ष में लगे हुये तिब्बतियों ने दिल्ली में चीन के दूतावास के सामने मोर्चे संभाल लिये । वे माँग कर रहे हैं कि चीन तिब्बत से निकल जाये और उनके देश को आज़ाद करे । चीन के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जब भी भारत आते हैं तो ये तीनों समाचार एक साथ प्रकाशित होते हैं । किसी समाचार को कितनी महत्ता देनी है , यह या तो समाचार समूह का मालिक तय करता है या फिर उसमें थोड़ी बहुत सरकार की भूमिका भी रहती ही होगी । लेकिन ये तीनों घटनाएँ एक साथ क्यों होती हैं ? ख़ासकर चीन के प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति के आने के साथ साथ ही चीन की सेना भी भारतीय सीमा में घुसपैठ क्यों करती है ? विदेश नीति संचालित करने की यह चीन की अपनी विशिष्ट शैली है । चीन मामलों के एक सिद्धहस्त विद्वान ने अपनी एक पुस्तक में एक घटना का ज़िक्र किया है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने भी चीन से यही सवाल पूछा था कि चीन भारत में घुसपैठ क्यों करता है ? तो चीन का उत्तर था , केवल प्रतिक्रिया जानने के लिये । इसका अर्थ हुआ कि चीन भारत की प्रतिक्रिया देख समझ कर ही अपनी विदेश नीति , रणनीति व कूटनीति निर्धारित करता है । इस लिये इस बात से चिन्तित होने की जरुरत नहीं है कि चीन के राष्ट्रपति के साथ साथ चीन की सेना भी लद्दाख के चमार क्षेत्र में पहुँच गई है । वहाँ उससे किस प्रकार सुलझना है , भारत की सेना उसमें सक्षम है ही । लेकिन असली प्रश्न यह है कि कुल मिला कर भारत सरकार की प्रतिक्रिया क्या है ?
लेकिन इससे पहले संक्षेप में यह जान लेना भी जरुरी है कि भारत का चीन के साथ झगड़ा क्या है और उसका कारण क्या है ? वैसे तो चीन और भारत के बीच विवाद का कोई कारण नहीं होना चाहिये था क्योंकि दोनों देशों की सीमा आपस में कहीं नहीं लगती । दोनों के बीच में तिब्बत पड़ता है । लेकिन १९४९ में चीन के गृहयुद्ध का अन्त हुआ और देश की सरकार पर माओ के नेतृत्व में चीन की साम्यवादी पार्टी का क़ब्ज़ा हो गया तो चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया और धीरे धीरे पूरे तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर लिया जिसके फलस्वरूप वहाँ के शासनाध्यक्ष चौदहवें दलाई लामा को भाग कर भारत में आना पड़ा । उनके साथ लगभग एक लाख और तिब्बती भी भारत में आये । तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर लेने के बाद चीन भारत का पड़ोसी देश बन गया और उसने भारत व तिब्बत के बीच की सीमा रेखा को मानने से इन्कार कर दिया । यह सीमा रेखा मैकमहोन सीमा रेखा कहलाती है और इस पर १९१४ में भारत व तिब्बत के बीच सहमति बनी थी । लेकिन चीन इस सीमा रेखा को अमान्य कर चुप नहीं बैठा , उसने १९६२ में भारत पर आक्रमण भी कर दिया और उसकी हज़ारों वर्गमील भूमि पर अभी भी क़ब्ज़ा किया हुआ है । इस आक्रमण के बाद दोनों देशों के दौत्य सम्बंध समाप्त हो गये । लेकिन १९७५ में आपात स्थिति लागू हो जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गान्धी ने फिर से चीन के साथ सम्बंध बनाने की शुरुआत की । परन्तु दोनों देशों के बीच सम्बंधों को बढ़ाने के काम में तेज़ी राजीव गान्धी के राज्यकाल में आई और इसमें नटवर सिंह अपनी भूमिका मुख्य मानते हैं । इसका कारण भी वे ख़ुद ही बताते हैं कि राजीव गान्धी को विदेश नीति की ज़्यादा समझ नहीं थी । इसका अर्थ हुआ कि राजीव गान्धी की अज्ञानता का लाभ उठा कर कुछ लोगों ने विदेश नीति के मामले में पलड़ा चीन के पक्ष में झुकाने की कोशिश की । उसके बाद ही चीन ने भारतीय सीमा में अपनी सेना की घुसपैठ को भारत के प्रति अपनी रणनीति व विदेश नीति के साथ जोड़ना शुरु किया ।
अभी तक चीन विदेश नीति के मामले में एजेंडा निर्धारित करने वाला रहा है । भारत चीन द्वारा किये जाने वाले काम पर प्रतिक्रिया जिताने का काम करता रहा है । उदाहरण के लिये चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा घोषित करता है तो भारत उसे बयान देकर नकारता है । चीन अरुणाचल के लोगों को भारतीय पासपोर्ट पर नहीं बल्कि एक अलग काग़ज़ पर बीजा देता है तो भारत उसे अमान्य कर देता है । चीन ने जम्मू कश्मीर के पाकिस्तान द्वारा क़ब्ज़ाये गये भू भाग के एक हिस्से को पाकिस्तान से ले लिया है और अप्रत्यक्ष रुप से वह जम्मू कश्मीर मामले में भी एक पक्ष बनने का प्रयास करता है तो भारत उसे बयान से नकारता है । गिलगित बल्तीस्तान में चीन की सेना किसी न किसी रुप में बैठ गई है । चीन ब्रह्मपुत्र पर तिब्बत के क्षेत्र में बाँध बना रहा है । भारत इधर उधर का बयान देकर महज़ अपनी चिन्ता जिता देता है । लेकिन जब तिब्बत के भीतर सौ से भी ज़्यादा भिक्षु और छात्र अहिंसक तरीक़े से स्वतंत्रता संघर्ष करते हुये आत्मदाह करते हैं तो भारत मानवीय अधिकारों के इस हनन पर चिन्ता भी ज़ाहिर नहीं करता । परन्तु जब चीन की सेना भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करती है तो महज़ बयान देने से तो काम नहीं चल सकता । उस वक़्त भारत सरकार की प्रतिक्रिया रहती है कि तुम भी पीछे हट जाओ और हम भी पीछे हट जायेंगे । यही चीन के अनुकूल है । वह तो भारतीय क्षेत्र से पीछे हट कर अपने पूर्ववत स्थान पर लौटता है लेकिन भारत के सैनिक अपने ही क्षेत्र में चीन के तुष्टीकरण के लिये पीछे हट जाते हैं । इस तरीक़े से हम चीन से शान्ति ख़रीदते हैं । द्विपक्षीय बातचीत में भारत तिब्बत का प्रश्न तो कभी उठाता ही नहीं , सीमा विवाद पर भी उसके शब्द नपे तुले ही होते हैं ताकि रिकार्ड भी बना रहे और चीन भी संतुष्ट रहे । यह भारत सरकार की अब तक की चीन को लेकर विदेशनीति व रणनीति का सारा संक्षेप रहा है ।
लेकिन दिल्ली में पहली बार पूर्ण बहुमत से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है और उसका नेतृत्व नरेन्द्र मोदी ने संभाला है । नई सरकार के आने से लगता है चीन के मामले में पहली भारत एजेंडा सेटर की भूमिका में आया है । नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में निर्वाचित तिब्बती सरकार के लोकतांत्रिक पद्धति से चुने गये प्रधानमंत्री डा० लोबजंग सांग्ये को बुलाया ही नहीं गया बल्कि वहाँ उन्हें सम्मानजनक स्थान भी दिया गया । भारत का मीडिया इस नीति परिवर्तन को कितना समझ पाया और कितना नहीं , इस पर बहस करने की जरुरत नहीं है लेकिन चीन, नीति में बदलाव के इस सूक्ष्म संकेत को तुरन्त समझ गया और उसने इस पर अपना विरोध भी दर्ज करवाया । इसी प्रकार चीन के राष्ट्रपति के भारत आगमन से पूर्व भारत के प्रधानमंत्री को किन किन देशों की यात्रा कर लेनी चाहिये , नरेन्द्र मोदी ने इसका चयन भी अत्यन्त सावधानी व दक्षता से किया । कूटनीति में बहुत सी बातचीत संकेतों के माध्यम से ही की जाती है । नरेन्द्र मोदी ने उन संकेतों का प्रयोग बहुत ही कुशलता से किया । चीन के राष्ट्रपति हिन्दोस्तान में आयें उससे पहले मोदी भूटान, नेपाल और जापान गये । भूटान व नेपाल को चीन लम्बे अरसे से विभिन्न मुद्राएँ बना बना कर अपने पाले में खींचने की कोशिश कर रहा है । उसमें उसे किसी सीमा तक सफलता भी मिली । लेकिन मोदी की काठमांडू और थिम्पू में हाज़िरी ने चीन को स्पष्ट कर दिया कि इन क्षेत्रों को आधार बना कर भारत की घेराबन्दी की अनुमति नहीं दी जा सकती । मोदी के माध्यम से शायद पहली बार भारत ने इन देशों में अपने सांस्कृतिक आधारों को प्राथमिकता दी । इससे पहले भारत सरकार सांस्कृतिक सम्बंधों को साम्प्रदायिकता ही मान कर चलती थी । लेकिन चीन को साफ़ और स्पष्ट संकेत मोदी की जापान यात्रा से ही मिले । चीन का जापान के साथ भी क्षेत्रीय सीमा को लेकर विवाद चलता रहता है । चीन को सबसे ज़्यादा चिन्ता जापान से ही रहती है , ख़ास कर तब जब जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में तबाह हो जाने के बाद भी दुनिया की अर्थ शक्तियों में अपना एक मुक़ाम हासिल कर लिया । जापान में जाकर बोला गया एक एक शब्द , चीन के लिये अपने ख़ास मायने रखता है । वहाँ जाकर मोदी ने चीन का नाम लिये बिना स्पष्ट कहा कि कुछ देश तो विकासवादी हैं और कुछ विस्तारवादी हैं । विस्तारवादी भी ऐसे जो सागर में भी अपनी धौंस ज़माना चाहते हैं । चीन की सरकारी अख़बार ने भी संकेत किया कि मोदी का संकेत चीन की ओर ही था । चीन वियतनाम और चीन के बीच के दक्षिण चीन सागर के अन्तर्राष्ट्रीय जल को भी अपना मान कर दादागिरी दिखा रहा है । वियतनाम ने इसका विरोध किया । उसने उस क्षेत्र में तेल तलाशने का कांन्ट्र्क्ट भारत के साथ किया । चीन इस का विरोध कर रहा है । नरेन्द्र मोदी ने इसका दो तरह से उत्तर दिया । जापान में विस्तारवादी का संकेत करने वाला बयान देकर और इधर जब चीन के राष्ट्रपति भारत आये तो उधर भारत के राष्ट्रपति को वियतनाम भेज कर । चीन इन संकेतों के अर्थ नहीं लगायेगा , ऐसी कल्पना करना बेमानी होगा ।
इतना सारा होम वर्क कर लेने के बाद नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति को भारत बुलाया है । पहली बार विश्व देख रहा है कि भारत की इस पहल पर चीन की क्या प्रतिक्रिया है ? नहीं तो आज तक साँस रोक कर इसी बात का इंतज़ार होता था कि चीन क्या एक्शन करता है । कुछ लोग कह सकते हैं कि चीन ने तो लद्दाख में घुसपैठ कर अपनी प्रतिक्रिया जता दी है । वास्तव में यह चीन की प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि काँठ कि हांडी को एक बार फिर चूल्हे पर चढ़ाने का प्रयास है । वह भी इस लिये कि भारत ने पहली बार साफ़ स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा कि है कि उत्तरी सीमा पर वह अपना संरचनात्क व सुरक्षात्मक ढाँचा मज़बूत करेगा । इस बार भारत का रवैया सुरक्षात्मक नहीं बल्कि अपनी सीमाओं को लेकर स्पष्ट व प्रतिबद्धात्मक दिखाई देता है । चीन भारत की इस नई विदेश नीति की भाषा को कितना समझ पाता है , यह तो बाद की बात है लेकिन इतना तो वह समझ ही गया लगता है कि भारत के नये निज़ाम की भाषा नई है , भारत के हितों की भाषा है , के.एम पणिक्कर के युग की वह भाषा नहीं है जो दिल्ली में बैठ कर भी चीन के हितों और उसकी नाराज़गी को लेकर अपना व्याकरण तय करती थी ।
भारत की इस पहल से पहली बार परिदृंष्य बदला है । ऐसा भी दिखाई देने लगा है कि जापान और चीन में भारत में निवेश करने को लेकर होड़ लग गई हो । जापान ने जितनी धनराशि के निवेश की घोषणा की है , चीन ने उससे लगभग तीन गुना ज़्यादा धनराशि निवेश करने का इरादा जिताया है । चीन और भारत के बीच जो व्यापार होता है , उसके बीच एक संतुलन अवश्य बनना चाहिये । चीन का घटिया और सस्ता माल भारत के लघु उद्योंगों को तबाह कर रहा है , उसको लेकर भी पहल होनी ही चाहिये । सब समस्आयों का हल संभव है , लेकिन तभी यदि भारत चीन के साथ बराबरी के स्तर पर बैठ कर बातचीत करता है । नरेन्द्र मोदी के युग में यही हुआ है । पहली बार सीमा को लेकर कोई ठोस पहल होने की संभावना बनी है । इसका स्वागत किया जाना चाहिये । भारत सरकार को यह भी ध्यान में रखना हेगा कि १४ नबम्वर १९६४ में संसद ने सर्वसम्मति से संकल्प पारित किया था कि चीन से क़ब्ज़ाये गये भारतीय भू भाग की एक एक ईंच भूमि छुड़ाई जायेगी । मोदी ने शायद इसी लिये कहा है कि चीन के राष्ट्रपति की यह यात्रा ईंच से शुरु करके मीलों तक जा सकती है । लेकिन क्या यह वही १९६२ के संकल्प वाला ईंच है ?
Thursday, September 11, 2014
RSS-Vagish Issar: RSS Sarkaryavah Man. Bhayya ji Joshi appeal for Ja...
RSS-Vagish Issar: RSS Sarkaryavah Man. Bhayya ji Joshi appeal for Ja...: RSS Sarkaryavah Man. Bhayya ji Joshi appeal for Jammu and Kashmir flood relief. मा. सरकार्यवाह सुरेश (भय्या) जी जोशी का आवाहन जम्मू-कश्म...
RSS Sarkaryavah Man. Bhayya ji Joshi appeal for Jammu and Kashmir flood relief.
मा. सरकार्यवाह सुरेश (भय्या) जी जोशी का आवाहन
जम्मू-कश्मीर राज्य में प्राकृतिक विनाश लीला के रूप में आई भयंकर बाढ़ में सौ से अधिक लोगों की जानें गईं, लाखों की संख्या में लोग स्थान-स्थान पर फँसे हैं तथा अनेक गाँव व नगर जलमग्न हैं; अभी तक पूरी हानि का तो अंदाजा लगाना भी कठिन ही है। संवाद माध्यमों से प्राप्त जानकारियों से ही सारा देश चिंतित है।
इस आपदा में जो लोग काल-कवलित हो गए, मैं उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। स्थान-स्थान पर फँसे लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए समस्त देशवासियों की ओर से ढाँढस बँधाते हुए धीरज से हालात का सामना करने की अपील करता हूँ तथा विश्वास दिलाता हूँ कि विपत्ति के इस क्षण में संपूर्ण देश अपने जम्मू-कश्मीर के संकट में पड़े निवासियों के साथ पूर्ण मनोयोग के साथ खड़ा है।
केंद्र व राज्य सरकार के साथ-साथ सेना, पुलिस, विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ तथा हजारों नागरिक, राहत व बचाव हेतु जी-जान से जुटकर जो कार्य कर रहे हैं; वह निश्चय ही प्रशंसनीय है। किन्तु अभी बहुत कुछ करना शेष है।
अपनी सदैव की परंपरा और अभ्यास के अनुसार संघ के स्वयंसेवक नागरिकों के सहयोग से ‘‘सेवा भारती, जम्मू-कश्मीर’’ के माध्यम से पहले दिन से ही बाढ़ में फँसे लोगों को निकालने, भोजन व्यवस्था तथा अन्य सभी प्रकार के सहायता कार्यों में दिन-रात जुटे हैंे।
जम्मू-कश्मीर पर अचानक आई इस प्राकृतिक विपत्ति के समय मैं समस्त देशवासियों तथा विशेषकर स्वयंसेवकों का आवाहन करता हूँ कि वे एकजुट होकर संकट में पड़े अपने जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए सभी प्रकार की आवश्यक सहायता हेतु आगे आएँ।
सहायता सामग्री व राशि ‘‘सेवा भारती, जम्मू-कश्मीर’’ (0191-2570750, 2547000, 09419112841, 09419110940) अथवा ‘‘राष्ट्रीय सेवा भारती, दिल्ली’’ (011-25814928, 25814693, 09868245005) के पास भिजवा सकते हैं।
Vagish Issar IVSK 09810068474
Wednesday, July 2, 2014










RSS Chief Mohan Bhagwat inaugurates Vidya Bharati’s School ‘Madhav Vidyapeeth’ at Bharuch, Gujarat
RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat inaugurated ‘Madhav Vidyapeeth’ a school affiliated to the RSS education wing Vidyabharti in Kakadkui village of Bharuch district.During the inaugural ceremony, along with senior RSS functionaries, Union Minister and Bharuch MP Mansukh Vasava, Rajya Sabha MP Bharatsinh Parmar, Gujarat Ministers Ganpat Vasava, Chhatrasinh Mori and Nanu Vanani The newly inaugurated school buildings in the compound that also houses a Ram Mandir.
The classrooms have been named after Indian mythological characters — Dhruv, Eklavya and Chanakya among others.
RSS Chief Mohan Bhagwat praised the skills of tribals, during his address to approximately 300 students belonging to tribal families.



Thursday, June 26, 2014
Indian concept of nation is diffrent from the West
New Delhi. India Policy Foundation on May 21 organised a seminar on ‘Dr Hedgewar and Indian Nationalism’ at Deen Dayal Research Institute on the occasion of the 75th death anniversery of Dr Hedgewar. In this seminar, the concept of nations was outlined by all the speaker in view of the contribution of Dr Hedgewar for it.
The main speaker on the occasion was Rashtriya Swayamsevak Sangh joint general secretry Dr Krishna Gopal. He said that the concept of nation of India and the west is entirely different. There are certain factors that makes a nation in the west that might be state, religion, economic issues, tribal identity or certain other things but for India the concept of nation is to assimilate everyone.
He said that the concept of Rashtra in India was not born in 1947 but it was developed through the ages. The concept of Rashtra is to assimilates everyone. From Baudha to Kabir to Shankar Deb kept this concept of nation alive and going. There is a need to understand that the concept of nation for India is not a political concept rather spritual.
Dr. Krishna Gopal said that Dr Hedgewar has started nothing new; he just continued age-old Indian tradition. Vivekanand and Arbindo was also doing the same. Going by that definition the concept of Hindu Rashtra is the basic concept of Nation in the country.
Initiating the debate on Hedgewar, Honorary Director of the IPF, Prof Rakesh Sinha said that modern historian especially Left and Nehruvian historian have done a great damage to the history. Role of the RSS in the national movement is completely ignored and deliberately swept under the carpet. He talked about 109 such files in which lots of information about the RSS was available being missing or destroyed. They could have told the real role of the RSS. This is a criminal injustice not only to the nation but also t the RSS.
Prof. Sinha said that history writing or social science is faulty. With certain fact in your hand you interpret it and with those facts and interpretation, perception is made but Left historians have done it other way round and they made perception first and then interpreted accordingly and while doing so facts are suppressed.
Dr Saradindu Mukherjee while presenting the bird eye view on the topic informed the gathering that corporate history writing has done a great damage to the nation and the history itself. Professor Kapil Kapoor, chairman of the IPF, presided over the function. He thanked the audience who enthusiastically participated in it.
Rashtriya Swayamsevak Sangh joint general secretry Dr Krishna Gopal

RSS Swayamsevaks helps in rescue of passengers at Railway accident near Chapra in Bihar
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CHAPRA/PATNA June 25 : At least four passengers were killed and 23 others injured, 13 of them seriously, when 12 coaches of the Dibrugarh-bound Rajdhani Express derailed near Chapra in Bihar’s Saran district on Wednesday, with Union home minister Rajnath Singh saying it was too early to blame the Maoists for the incident.
18 wagons of a goods train also derailed due to a blast in east Champaran district with the SP Vinay Kumar not ruling out the involvement of Maoists. Chief public relations officer of East Central Railway (ECR) Arvind Kumar Rajak said while three passengers were killed in the Rajdhani derailment, another succumbed to injuries in a hospital,
Seven coaches-B-5 to B-10 and the power car of the Delhi-Dibrugarh Rajdhani derailed at the Golden Ganj station, about 75km from Patna, while five coaches, B-1, B-2, B-3, B-4 and the pantry car overturned at around 2:11am. Rajak said some of the coaches were hurled as far as 700 feet away from the track. (Inputs from TOI)
RSS Steps in:
RSS Swayamsevaks from the local area rushed to the venue of the railway accident, helped in the rescue operation, helped the passengers who were in a real need of help.

Thursday, June 12, 2014
Monday, June 9, 2014
RSS-Vagish Issar: कार्यकर्ता बनने का कौशल संघ से सीखें : महाश्रमण जी...
RSS-Vagish Issar: कार्यकर्ता बनने का कौशल संघ से सीखें : महाश्रमण जी...: कार्यकर्ता बनने का कौशल संघ से सीखें : महाश्रमण जी नई दिल्ली. तेरापंथ समाज के जैन मुनि आचार्य श्री महाश्रमण जी ने राष्ट्रीय स्वयंसे...
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