Monday, September 29, 2014

परमपूज्य सरसंघचालक का सत्य आधारित जीवन जीने का आह्वान सोनीपत (हरियाणा). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने कहा है कि मनुष्य को अपना और अन्य जीवों का कल्याण करना है तो उसे सत्य पर आधारित जीवन जीना होगा. सत्य है कि आत्मा एक है और यही आत्मा परमात्मा है. यही आत्मा हर जीव के में विद्यमान है. परमात्मा की सेवा करना ही हमारा लक्ष्य है. इसलिये सारी दुनिया के सुख के लिये हमारा जीवन है. जब हम ऐसा करते हैं तो हमारा जीवन उपयोगी होता है, सुख देता है और दुनिया का भी भला करता है. डा. भागवत ने यह भी कहा कि हिन्दू वही है, जो सबके सुख और उन्नति की कामना करता है और सृष्टि के सभी जीवों को समान भाव से देखता है. यहां भगवान महावीर इन्सटीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में 25 से 28 सितम्बर तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रांत द्वारा युवा संकल्प शिविर आयोजित हुआ. शिविर में दिल्ली के वे स्वयंसेवक शामिल हुये, जो किसी न किसी महाविद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं. छात्रों की कुल संख्या 2028 थी. शिविर की विशेषता यह थी कि सभी स्वयंसेवक अपने खर्चे पर आये थे. चार दिवसीय इस शिविर में छात्रों ने जहां विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया, वहीं उन्हें परम-पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत एवं वरिष्ठ प्रचारकों का मार्गदर्शन मिला. शिविर का औपचारिक उद्घाटन 26 सितम्बर को प. पू. डॉ. भागवत ने दीप प्रज्वलित कर किया. उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध वैज्ञानिक और परमाणु आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोदकर. मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रांत के प्रांत संघचालक श्री कुलभूषण आहूजा भी उपस्थित थे. डॉ. अनिल काकोदकर ने युवाओं को संबोधित करते हुये कहा कि अच्छी शिक्षा प्राप्त कर उस शिक्षा का राष्ट्र के हित में उपयोग करें और कुछ ऐसा कर दिखायें कि हमारे न रहने से भी हमारे कार्य का प्रभाव समाज पर दिखे. इस अवसर पर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य, अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री अनिल ओक, क्षेत्रीय प्रचारक श्री रामेश्वर, सह क्षेत्र प्रचारक श्री प्रेम कुमार, क्षेत्र कार्यवाह श्री सीताराम व्यास, सह क्षेत्र कार्यवाह श्री विजय कुमार सहित अनेक वरिष्ठ प्रचारक और कार्यकर्ता उपस्थित थे. शिविर के दूसरे दिन 'राष्ट्र उत्थान में प्राध्यापकों की भूमिका' विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई. गोष्ठी को संबोधित करते हुये परम-पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन जी भागवत ने कहा कि आज राष्ट्र निर्माण का काम संघ कर रहा है, लेकिन कुछ लोगों को संघ के विषय में ठीक प्रकार से जानकारी नहीं है. कार्यक्रम के मध्य में प्रश्नोत्तर का भी कार्यक्रम था. जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक भूपेश कुमार ने सरसंघचालक से पूछा कि संघ समाज के हर अच्छे काम का सहभागी है लेकिन प्रचार क्यों नहीं करता? इस प्रश्न पर सरसंघचालक ने कहा कि हमारा अपना प्रचार का तंत्र है. हम घर-घर जाते हैं, लोगों से मिलते हैं और अपना कार्य करते हैं. एक प्राध्यापक ने सवाल किया कि आज हम डॉ. और इंजीनियर बनाते जा रहे हैं, लेकिन इसका परिणाम यह हो रहा है कि वे राष्ट्र भाव से दूर होते जा रहे हैं? इस पर श्री भागवत ने कहा कि सबसे पहले अपने बच्चों की इच्छा को जानना चाहिये. अधिकतर परिवारों में बच्चों पर दबाव होता है कि आपको इन क्षेत्रों मंी ही जाना है, पर बच्चों की रुचि किसी अन्य क्षेत्र में होती है. जब वे अपनी रुचि के क्षेत्र में नहीं जाते हैं, तो इन क्षेत्रों में आकर उनका एक ही उद्देश्य होजाता है धन अर्जित करना और इसी के चलते वे धन के लालच में राष्ट्र भाव से दूर होते चले जाते हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ से जुड़े राकेश कंवर ने प्रश्न किया कि उन पर आरोप लगने लगता है कि वे राजनीतिक हैं. इस पर सरसंघचालक ने कहा हम राष्ट्र की बात करने वालों का समर्थन करते हैं. जो राष्ट्र की बातें करता है संघ उसके साथ है. अच्छे काम के लिये संघ सभी के साथ है. गोहत्या बंद हो, राम मंदिर का निर्माण हो, यह हमारा कार्य है. संघ से जुड़ने वालों को अलग नजर से देखा जाये यह स्वाभाविक है. कार्यक्रम के अन्त में प्राध्यापकों को संबोधित करते हुये मोहन जी भागवत ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है.शिक्षक को आज शिक्षार्थियों को बताना है कि सत्य पर ही रहना है किसी भी परिस्थिति में सत्य से नहीं डिगना है. चाहे कितने ही संकट क्यों न आयें. कार्यक्रम में प्रमुख रूप से अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं उत्तर क्षेत्र के संघचालक डॉ. बजरंगलाल गुप्त और दिल्ली प्रान्त के प्रान्त कार्यवाह श्री भरत भूषण सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे. शिविर का समापन 28 सितम्बर को हुआ. समापन समारोह को सम्बोधित करते हुये परम पूज्य सरसंघचालक ने कहा कि संघ को समझना है तो डॉ. हेडगेवार के जीवन को समझो और डॉ. हेडगेवार को समझना है तो संघ को समझो. उन्होंने अपने खून को पानी कर संघ के लिये काम किया. हिन्दू समाज को संगठित किया. यदि आप उनके बौद्धिकों को पढ़ें तो उन्होंने परिस्थितियों के बारे में बहुत कम कहा है. हमें क्या करना चाहिये, इस बारे में उन्होंने सबसे ज्यादा कहा है. संघ में व्यक्ति वंदना नहीं होती, बल्कि संघ कौटुम्बिक आधार पर चलता है. संघ आत्मीयता से चलता है. उन्होंने एक लघु कथा के जरिये स्वयंसेवकों को जीवन में सक्रिय रहने व अपने उद्देश्य के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया. श्री भागवत ने कहा कि संघ में हमारा रिश्ता नेता कार्यकर्ता का नहीं होता, बल्कि एक कुटुंब में आत्मीयता से रहने का होता है. हमें अपने दायित्व को पूरी निष्ठा के साथ निभाना चाहिये. दायित्व छोटा या बड़ा नहीं होता. इसलिये आपको जो भी दायित्व मिले, उसे सर्वश्रेष्ठ मानकर पूरी ईमानदारी से अपने कार्यको करना चाहिये. संघ के स्वयंसेवक को पहले संघ बनना पड़ता है. संघ के आचरण को अपने जीवन में उतारना पड़ता है. संघ के कार्य को आगे बढ़ाने के लिये हमें निरंतर में सक्रिय रहना चाहिये. तभी संघ का कार्य आगे बढ़ेगा. कार्य करने से ही कार्य आगे बढ़ता है, सिर्फ योजना बनाने से नहीं. इसलिये यदि स्वयंसेवक अपने कार्य के प्रति ईमानदारी से सक्रिय रहेंगे तो संघ का कार्य कर सकेंगे.

Tuesday, September 23, 2014

भारतीय मंगल अभियान की सफलता पर बधाइयाँ CONGRATULATIONS ISRO CREATES HISTORY INDIA IS NOW THE FIRST COUNTRY IN THE WORLD TO REACH MARS'S ORBIT IN THE FIRST ATTEMPT.

Friday, September 19, 2014

चीन के राष्ट्रपति का भारत में आगमन--- डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री पहली ख़बर - सत्रह सितम्बर को चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग भारत में आ गये । दूसरी ख़बर- उससे एक दो दिन पहले चीन की सेना के सैनिक लद्दाख में भारतीय सीमा में घुस आये । तीसरी ख़बर- सत्रह सितम्बर को ही अपने देश की आज़ादी के संघर्ष में लगे हुये तिब्बतियों ने दिल्ली में चीन के दूतावास के सामने मोर्चे संभाल लिये । वे माँग कर रहे हैं कि चीन तिब्बत से निकल जाये और उनके देश को आज़ाद करे । चीन के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जब भी भारत आते हैं तो ये तीनों समाचार एक साथ प्रकाशित होते हैं । किसी समाचार को कितनी महत्ता देनी है , यह या तो समाचार समूह का मालिक तय करता है या फिर उसमें थोड़ी बहुत सरकार की भूमिका भी रहती ही होगी । लेकिन ये तीनों घटनाएँ एक साथ क्यों होती हैं ? ख़ासकर चीन के प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति के आने के साथ साथ ही चीन की सेना भी भारतीय सीमा में घुसपैठ क्यों करती है ? विदेश नीति संचालित करने की यह चीन की अपनी विशिष्ट शैली है । चीन मामलों के एक सिद्धहस्त विद्वान ने अपनी एक पुस्तक में एक घटना का ज़िक्र किया है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने भी चीन से यही सवाल पूछा था कि चीन भारत में घुसपैठ क्यों करता है ? तो चीन का उत्तर था , केवल प्रतिक्रिया जानने के लिये । इसका अर्थ हुआ कि चीन भारत की प्रतिक्रिया देख समझ कर ही अपनी विदेश नीति , रणनीति व कूटनीति निर्धारित करता है । इस लिये इस बात से चिन्तित होने की जरुरत नहीं है कि चीन के राष्ट्रपति के साथ साथ चीन की सेना भी लद्दाख के चमार क्षेत्र में पहुँच गई है । वहाँ उससे किस प्रकार सुलझना है , भारत की सेना उसमें सक्षम है ही । लेकिन असली प्रश्न यह है कि कुल मिला कर भारत सरकार की प्रतिक्रिया क्या है ? लेकिन इससे पहले संक्षेप में यह जान लेना भी जरुरी है कि भारत का चीन के साथ झगड़ा क्या है और उसका कारण क्या है ? वैसे तो चीन और भारत के बीच विवाद का कोई कारण नहीं होना चाहिये था क्योंकि दोनों देशों की सीमा आपस में कहीं नहीं लगती । दोनों के बीच में तिब्बत पड़ता है । लेकिन १९४९ में चीन के गृहयुद्ध का अन्त हुआ और देश की सरकार पर माओ के नेतृत्व में चीन की साम्यवादी पार्टी का क़ब्ज़ा हो गया तो चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया और धीरे धीरे पूरे तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर लिया जिसके फलस्वरूप वहाँ के शासनाध्यक्ष चौदहवें दलाई लामा को भाग कर भारत में आना पड़ा । उनके साथ लगभग एक लाख और तिब्बती भी भारत में आये । तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर लेने के बाद चीन भारत का पड़ोसी देश बन गया और उसने भारत व तिब्बत के बीच की सीमा रेखा को मानने से इन्कार कर दिया । यह सीमा रेखा मैकमहोन सीमा रेखा कहलाती है और इस पर १९१४ में भारत व तिब्बत के बीच सहमति बनी थी । लेकिन चीन इस सीमा रेखा को अमान्य कर चुप नहीं बैठा , उसने १९६२ में भारत पर आक्रमण भी कर दिया और उसकी हज़ारों वर्गमील भूमि पर अभी भी क़ब्ज़ा किया हुआ है । इस आक्रमण के बाद दोनों देशों के दौत्य सम्बंध समाप्त हो गये । लेकिन १९७५ में आपात स्थिति लागू हो जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गान्धी ने फिर से चीन के साथ सम्बंध बनाने की शुरुआत की । परन्तु दोनों देशों के बीच सम्बंधों को बढ़ाने के काम में तेज़ी राजीव गान्धी के राज्यकाल में आई और इसमें नटवर सिंह अपनी भूमिका मुख्य मानते हैं । इसका कारण भी वे ख़ुद ही बताते हैं कि राजीव गान्धी को विदेश नीति की ज़्यादा समझ नहीं थी । इसका अर्थ हुआ कि राजीव गान्धी की अज्ञानता का लाभ उठा कर कुछ लोगों ने विदेश नीति के मामले में पलड़ा चीन के पक्ष में झुकाने की कोशिश की । उसके बाद ही चीन ने भारतीय सीमा में अपनी सेना की घुसपैठ को भारत के प्रति अपनी रणनीति व विदेश नीति के साथ जोड़ना शुरु किया । अभी तक चीन विदेश नीति के मामले में एजेंडा निर्धारित करने वाला रहा है । भारत चीन द्वारा किये जाने वाले काम पर प्रतिक्रिया जिताने का काम करता रहा है । उदाहरण के लिये चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा घोषित करता है तो भारत उसे बयान देकर नकारता है । चीन अरुणाचल के लोगों को भारतीय पासपोर्ट पर नहीं बल्कि एक अलग काग़ज़ पर बीजा देता है तो भारत उसे अमान्य कर देता है । चीन ने जम्मू कश्मीर के पाकिस्तान द्वारा क़ब्ज़ाये गये भू भाग के एक हिस्से को पाकिस्तान से ले लिया है और अप्रत्यक्ष रुप से वह जम्मू कश्मीर मामले में भी एक पक्ष बनने का प्रयास करता है तो भारत उसे बयान से नकारता है । गिलगित बल्तीस्तान में चीन की सेना किसी न किसी रुप में बैठ गई है । चीन ब्रह्मपुत्र पर तिब्बत के क्षेत्र में बाँध बना रहा है । भारत इधर उधर का बयान देकर महज़ अपनी चिन्ता जिता देता है । लेकिन जब तिब्बत के भीतर सौ से भी ज़्यादा भिक्षु और छात्र अहिंसक तरीक़े से स्वतंत्रता संघर्ष करते हुये आत्मदाह करते हैं तो भारत मानवीय अधिकारों के इस हनन पर चिन्ता भी ज़ाहिर नहीं करता । परन्तु जब चीन की सेना भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करती है तो महज़ बयान देने से तो काम नहीं चल सकता । उस वक़्त भारत सरकार की प्रतिक्रिया रहती है कि तुम भी पीछे हट जाओ और हम भी पीछे हट जायेंगे । यही चीन के अनुकूल है । वह तो भारतीय क्षेत्र से पीछे हट कर अपने पूर्ववत स्थान पर लौटता है लेकिन भारत के सैनिक अपने ही क्षेत्र में चीन के तुष्टीकरण के लिये पीछे हट जाते हैं । इस तरीक़े से हम चीन से शान्ति ख़रीदते हैं । द्विपक्षीय बातचीत में भारत तिब्बत का प्रश्न तो कभी उठाता ही नहीं , सीमा विवाद पर भी उसके शब्द नपे तुले ही होते हैं ताकि रिकार्ड भी बना रहे और चीन भी संतुष्ट रहे । यह भारत सरकार की अब तक की चीन को लेकर विदेशनीति व रणनीति का सारा संक्षेप रहा है । लेकिन दिल्ली में पहली बार पूर्ण बहुमत से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है और उसका नेतृत्व नरेन्द्र मोदी ने संभाला है । नई सरकार के आने से लगता है चीन के मामले में पहली भारत एजेंडा सेटर की भूमिका में आया है । नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में निर्वाचित तिब्बती सरकार के लोकतांत्रिक पद्धति से चुने गये प्रधानमंत्री डा० लोबजंग सांग्ये को बुलाया ही नहीं गया बल्कि वहाँ उन्हें सम्मानजनक स्थान भी दिया गया । भारत का मीडिया इस नीति परिवर्तन को कितना समझ पाया और कितना नहीं , इस पर बहस करने की जरुरत नहीं है लेकिन चीन, नीति में बदलाव के इस सूक्ष्म संकेत को तुरन्त समझ गया और उसने इस पर अपना विरोध भी दर्ज करवाया । इसी प्रकार चीन के राष्ट्रपति के भारत आगमन से पूर्व भारत के प्रधानमंत्री को किन किन देशों की यात्रा कर लेनी चाहिये , नरेन्द्र मोदी ने इसका चयन भी अत्यन्त सावधानी व दक्षता से किया । कूटनीति में बहुत सी बातचीत संकेतों के माध्यम से ही की जाती है । नरेन्द्र मोदी ने उन संकेतों का प्रयोग बहुत ही कुशलता से किया । चीन के राष्ट्रपति हिन्दोस्तान में आयें उससे पहले मोदी भूटान, नेपाल और जापान गये । भूटान व नेपाल को चीन लम्बे अरसे से विभिन्न मुद्राएँ बना बना कर अपने पाले में खींचने की कोशिश कर रहा है । उसमें उसे किसी सीमा तक सफलता भी मिली । लेकिन मोदी की काठमांडू और थिम्पू में हाज़िरी ने चीन को स्पष्ट कर दिया कि इन क्षेत्रों को आधार बना कर भारत की घेराबन्दी की अनुमति नहीं दी जा सकती । मोदी के माध्यम से शायद पहली बार भारत ने इन देशों में अपने सांस्कृतिक आधारों को प्राथमिकता दी । इससे पहले भारत सरकार सांस्कृतिक सम्बंधों को साम्प्रदायिकता ही मान कर चलती थी । लेकिन चीन को साफ़ और स्पष्ट संकेत मोदी की जापान यात्रा से ही मिले । चीन का जापान के साथ भी क्षेत्रीय सीमा को लेकर विवाद चलता रहता है । चीन को सबसे ज़्यादा चिन्ता जापान से ही रहती है , ख़ास कर तब जब जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में तबाह हो जाने के बाद भी दुनिया की अर्थ शक्तियों में अपना एक मुक़ाम हासिल कर लिया । जापान में जाकर बोला गया एक एक शब्द , चीन के लिये अपने ख़ास मायने रखता है । वहाँ जाकर मोदी ने चीन का नाम लिये बिना स्पष्ट कहा कि कुछ देश तो विकासवादी हैं और कुछ विस्तारवादी हैं । विस्तारवादी भी ऐसे जो सागर में भी अपनी धौंस ज़माना चाहते हैं । चीन की सरकारी अख़बार ने भी संकेत किया कि मोदी का संकेत चीन की ओर ही था । चीन वियतनाम और चीन के बीच के दक्षिण चीन सागर के अन्तर्राष्ट्रीय जल को भी अपना मान कर दादागिरी दिखा रहा है । वियतनाम ने इसका विरोध किया । उसने उस क्षेत्र में तेल तलाशने का कांन्ट्र्क्ट भारत के साथ किया । चीन इस का विरोध कर रहा है । नरेन्द्र मोदी ने इसका दो तरह से उत्तर दिया । जापान में विस्तारवादी का संकेत करने वाला बयान देकर और इधर जब चीन के राष्ट्रपति भारत आये तो उधर भारत के राष्ट्रपति को वियतनाम भेज कर । चीन इन संकेतों के अर्थ नहीं लगायेगा , ऐसी कल्पना करना बेमानी होगा । इतना सारा होम वर्क कर लेने के बाद नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति को भारत बुलाया है । पहली बार विश्व देख रहा है कि भारत की इस पहल पर चीन की क्या प्रतिक्रिया है ? नहीं तो आज तक साँस रोक कर इसी बात का इंतज़ार होता था कि चीन क्या एक्शन करता है । कुछ लोग कह सकते हैं कि चीन ने तो लद्दाख में घुसपैठ कर अपनी प्रतिक्रिया जता दी है । वास्तव में यह चीन की प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि काँठ कि हांडी को एक बार फिर चूल्हे पर चढ़ाने का प्रयास है । वह भी इस लिये कि भारत ने पहली बार साफ़ स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा कि है कि उत्तरी सीमा पर वह अपना संरचनात्क व सुरक्षात्मक ढाँचा मज़बूत करेगा । इस बार भारत का रवैया सुरक्षात्मक नहीं बल्कि अपनी सीमाओं को लेकर स्पष्ट व प्रतिबद्धात्मक दिखाई देता है । चीन भारत की इस नई विदेश नीति की भाषा को कितना समझ पाता है , यह तो बाद की बात है लेकिन इतना तो वह समझ ही गया लगता है कि भारत के नये निज़ाम की भाषा नई है , भारत के हितों की भाषा है , के.एम पणिक्कर के युग की वह भाषा नहीं है जो दिल्ली में बैठ कर भी चीन के हितों और उसकी नाराज़गी को लेकर अपना व्याकरण तय करती थी । भारत की इस पहल से पहली बार परिदृंष्य बदला है । ऐसा भी दिखाई देने लगा है कि जापान और चीन में भारत में निवेश करने को लेकर होड़ लग गई हो । जापान ने जितनी धनराशि के निवेश की घोषणा की है , चीन ने उससे लगभग तीन गुना ज़्यादा धनराशि निवेश करने का इरादा जिताया है । चीन और भारत के बीच जो व्यापार होता है , उसके बीच एक संतुलन अवश्य बनना चाहिये । चीन का घटिया और सस्ता माल भारत के लघु उद्योंगों को तबाह कर रहा है , उसको लेकर भी पहल होनी ही चाहिये । सब समस्आयों का हल संभव है , लेकिन तभी यदि भारत चीन के साथ बराबरी के स्तर पर बैठ कर बातचीत करता है । नरेन्द्र मोदी के युग में यही हुआ है । पहली बार सीमा को लेकर कोई ठोस पहल होने की संभावना बनी है । इसका स्वागत किया जाना चाहिये । भारत सरकार को यह भी ध्यान में रखना हेगा कि १४ नबम्वर १९६४ में संसद ने सर्वसम्मति से संकल्प पारित किया था कि चीन से क़ब्ज़ाये गये भारतीय भू भाग की एक एक ईंच भूमि छुड़ाई जायेगी । मोदी ने शायद इसी लिये कहा है कि चीन के राष्ट्रपति की यह यात्रा ईंच से शुरु करके मीलों तक जा सकती है । लेकिन क्या यह वही १९६२ के संकल्प वाला ईंच है ?

Thursday, September 11, 2014

RSS-Vagish Issar: RSS Sarkaryavah Man. Bhayya ji Joshi appeal for Ja...

RSS-Vagish Issar: RSS Sarkaryavah Man. Bhayya ji Joshi appeal for Ja...: RSS Sarkaryavah Man. Bhayya ji Joshi appeal for Jammu and Kashmir flood relief. मा. सरकार्यवाह सुरेश (भय्या) जी जोशी का आवाहन जम्मू-कश्म...
RSS Sarkaryavah Man. Bhayya ji Joshi appeal for Jammu and Kashmir flood relief. मा. सरकार्यवाह सुरेश (भय्या) जी जोशी का आवाहन जम्मू-कश्मीर राज्य में प्राकृतिक विनाश लीला के रूप में आई भयंकर बाढ़ में सौ से अधिक लोगों की जानें गईं, लाखों की संख्या में लोग स्थान-स्थान पर फँसे हैं तथा अनेक गाँव व नगर जलमग्न हैं; अभी तक पूरी हानि का तो अंदाजा लगाना भी कठिन ही है। संवाद माध्यमों से प्राप्त जानकारियों से ही सारा देश चिंतित है। इस आपदा में जो लोग काल-कवलित हो गए, मैं उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। स्थान-स्थान पर फँसे लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए समस्त देशवासियों की ओर से ढाँढस बँधाते हुए धीरज से हालात का सामना करने की अपील करता हूँ तथा विश्वास दिलाता हूँ कि विपत्ति के इस क्षण में संपूर्ण देश अपने जम्मू-कश्मीर के संकट में पड़े निवासियों के साथ पूर्ण मनोयोग के साथ खड़ा है। केंद्र व राज्य सरकार के साथ-साथ सेना, पुलिस, विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ तथा हजारों नागरिक, राहत व बचाव हेतु जी-जान से जुटकर जो कार्य कर रहे हैं; वह निश्चय ही प्रशंसनीय है। किन्तु अभी बहुत कुछ करना शेष है। अपनी सदैव की परंपरा और अभ्यास के अनुसार संघ के स्वयंसेवक नागरिकों के सहयोग से ‘‘सेवा भारती, जम्मू-कश्मीर’’ के माध्यम से पहले दिन से ही बाढ़ में फँसे लोगों को निकालने, भोजन व्यवस्था तथा अन्य सभी प्रकार के सहायता कार्यों में दिन-रात जुटे हैंे। जम्मू-कश्मीर पर अचानक आई इस प्राकृतिक विपत्ति के समय मैं समस्त देशवासियों तथा विशेषकर स्वयंसेवकों का आवाहन करता हूँ कि वे एकजुट होकर संकट में पड़े अपने जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए सभी प्रकार की आवश्यक सहायता हेतु आगे आएँ। सहायता सामग्री व राशि ‘‘सेवा भारती, जम्मू-कश्मीर’’ (0191-2570750, 2547000, 09419112841, 09419110940) अथवा ‘‘राष्ट्रीय सेवा भारती, दिल्ली’’ (011-25814928, 25814693, 09868245005) के पास भिजवा सकते हैं। Vagish Issar IVSK 09810068474