Monday, December 21, 2015

RSS-Vagish Issar: गीता में विश्व शांति और विश्व को एक मंच पर लाने की...

RSS-Vagish Issar: गीता में विश्व शांति और विश्व को एक मंच पर लाने की...: गीता में विश्व शांति और विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत विद्यमान – सुरेश भय्या जी जोशी कुरुक्षेत्र (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक...

RSS-Vagish Issar: संगठन में धन से अधिक महत्व महापुरुषों के जीवन का अ...

RSS-Vagish Issar: संगठन में धन से अधिक महत्व महापुरुषों के जीवन का अ...: संगठन में धन से अधिक महत्व महापुरुषों के जीवन का अनुसरण है : सरसंघचालक जी नई दिल्ली, 19 दिसम्बर 2015, (इंविसंके) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक...
संगठन में धन से अधिक महत्व महापुरुषों के जीवन का अनुसरण है : सरसंघचालक जी नई दिल्ली, 19 दिसम्बर 2015, (इंविसंके) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी ने संघ के ज्येष्ठ प्रचारक सरदार चिरंजीव सिंह जी का अभिनंदन करते हुए कहा कि दीपक की तरह संघ के प्रचारक दूसरों के लिए जल कर राह दिखाते हैं। सम्मान आदि से प्रचारक दूर रहना ही पसंद करते हैं। संघ में व्यक्ति के सम्मान की परंपरा नहीं है, किंतु संगठन के लाभ के लिए न चाहते हुए भी सम्मान अर्जित करना पड़ता है। सरसंघचालक जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं वर्तमान में राष्ट्रीय सिख संगत के मुख्य संरक्षक सरदार चिरंजीव सिंह जी के 85 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर नई दिल्ली स्थित मावलंकर सभागार में आयोजित सत्कार समारोह में बड़ी संख्या में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये सिख संगत के कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे। सरसंघचालक जी ने बताया कि जीवन का आदर्श अपने जीवन से खड़ा करना यह सतत तपस्या संघ के प्रचारक करते हैं। इसके लिए वह स्वयं को ठीक रखने की कोशिश जीवन पर्यन्त करते है। महापुरुषों के जीवन का अनुसरण करते रहने वाले साथी मिलते रहें यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। धन से ज्यादा, संगठन का फायदा इसमें है कि जो रास्ता संगठन दिखाता है उस रास्ते पर चलने की हिम्मत समाज में बने। उन्होंने बताया कि संघ में प्रचारक निकाले नहीं जाते वह अपने मन से बनते हैं। जिसको परपीड़ा नहीं मालूम होती वह कैसे पुरुष हो सकता है। मनुष्य को मनुष्य होने का साहस करना होता है, संघ स्वयंसेवको को ऐसा वातावरण देता है। सरदार चिरंजीव सिंह जी के जीवन से ऐसा उदाहरण देख लिया है। अब हम लोगों के ऊपर है कि हम कैसे उनके जीवन के अनुसार चल सकते हैं। अपनी शक्ति बढ़ाते चलो अपना संगठन मजबूत करते चलो, सरदार चिरंजीव सिंह जी ने ऐसा कर के दिखाया। अगर यह परंपरा आगे चलाने की कोशिश हम सभी करें तो किसी भी धन प्राप्ति से ज्यादा ख़ुशी उनको होगी। राष्ट्रीय सिख संगत के संरक्षक सरदार चिरंजीव सिंह जी ने बताया कि संघ में प्रचारक बनने के लिए किसी घटना की आवश्यकता नहीं होती, जैसे परिवार का काम करते हो वैसे समाज का काम करो। सहज और स्वभाविक रूप से आप समाज के लिए काम करो। उन्होने डॉ। हेडगेवार जी का संदर्भ दिया कि उन्होंने केवल 5 बच्चों को साथ लेकर संघ की स्थापना की। यही एक घटना हो सकती है हम सभी के संघ में आने के लिए। संघ का काम यही है कि देश के प्रति एक आग उत्पन्न कर देना, अब उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि वह प्रचारक जीवन अपनाता है या फिर अन्य मार्ग से देश की सेवा करता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एकमात्र संगठन है जिसमे व्यक्ति सिर्फ देने ही आता है, अपने लिए कुछ नहीं मांगता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिख गुरुओं का हृदय से बहुत आदर करता है। गुरु गोविंद सिंह जी ने जिन लोगों के लिए सब कुछ किया जब उन लोगों ने कुछ नहीं किया तो उन्होंने उनके लिए कुछ बुरा नहीं कहा। आज हम अपनी कमजोरियों की जिम्मेदारी दूसरों पर डालना चाहते हैं, भारतवर्ष के पतन का यह बहुत बड़ा कारण है, क्योंकि हम दूसरों को ही बुरा ठहराने की कोशिश करते हैं। उन्होंने गुरुवाणी के आधार पर सारे समाज को जागृत करने को कहा कि सिख धर्म वास्तव में क्या है। गुरुओं के उपदेश के अनुसार सिखों से आचरण करने को कहा। सरदार चिरंजीव सिंह जी का सिख संगत के कार्य को आगे बढ़ाने में अभूतपूर्व योगदान है। उन्होंने 1953 में स्नातक शिक्षा पूर्ण कर 62 वर्ष से संघ के प्रचारक के रूप में विभिन्न संगठनों, विहिप, पंजाब कल्याण फोरम, संघ के विभिन्न दायित्व व राष्ट्रीय सिख संगत के 12 वर्ष तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहकर और वर्तमान में मुख्य संरक्षक, ने अपना सम्पूर्ण जीवन माँ भारती को समर्पित किया हुआ है। प्रचारक जीवन की इस समाज व राष्ट्र के लिए आज भी पूर्ण प्रसांगिकता है तथा प्रचारक जीवन अपने आप में एक पूर्ण जीवन, साध्ना एवं दर्शन है। वर्तमान युवकों, विशेषकर सिख युवकों ने प्रचारक जीवन के प्रति रूझान बढ़े व आम समाज में प्रचारक की महत्वता बढे़, इसमें उनके प्रयास से आशातीत परिणाम सामने आए हैं। राष्ट्रीय सिख संगत के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार गुरचरन सिंह गिल जी द्वारा कार्यक्रम का भूमिका प्रस्तुत करते हुए कहा कि सरदार चिरंजीव सिंह का जन्म माता जोगेन्दर कौर व पिता सरदार हरकरण सिंह के गृह शहर पटियाला में अश्विन शुक्ल नवमी, वि।सं। 1987 ई। तद्नुसार 1 अक्टूबर 1930 को हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सनातन धर्म इंग्लिश हाई स्कूल पटियाला में हुई। वे सातवीं कक्षा से संघ के सम्पर्क में आये तथा तब से सदा के लिए संघ के होकर रह गये। 1948 में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र व दर्शनशास्त्र से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसी बीच जब संघ पर प्रतिबंध लगा तो वे सत्याग्रह कर जेल गए। परिवार के स्वप्न थे कि चिरंजीव सिंह जी किसी बड़ी नौकरी में जा कर धन व यश कमायें, पर संघ शाखा से मिले संस्कार उन्हें अपना जीवन, अपनी पवित्र मातृभूमि व देश पर बलिदान करने की ओर ले जा रहे थे। वह 14 जून 1953 को आजीवन देश सेवा के लिए संघ के प्रचारक हो गए। वह विभिन्न जिलों के प्रचारक, बाद में लुधियाना के विभाग प्रचारक व पंजाब के सह-प्रचारक रहे। आपात्काल में लोकशाही की पुनः प्रस्थापना के जनसंघर्ष में सक्रिय रहे। भूमिगत रहकर सैंकड़ों बंधुओं को संघर्ष में सहभागी होने की प्रेरणा दी। पंजाब में उग्रवाद के दिनों में जब सामाजिक समरसता की बात कहना दुस्साहस ही था, तब इन्होंने पंजाब कल्याण फोरम बनाकर इसके संयोजक का महत्वपूर्ण दायित्व निभाया। वे जान हथेली पर रखकर सांझीवालता की सोच रखने वाले सिख विद्वानों, गुरुसिख संतों व प्रमुख हस्तियों से निरंतर संवाद बनाये रहे तथा उग्रवाद से पीडि़त परिवारों को संवेदना व सहयोग प्राप्त करवाते रहे। उन्होंने गुरुसिख व सनातन परम्परा के संतो से संवाद बनाकर, समाज में आत्मीयता, प्रेम, सौहार्द व सांझीवालता का सन्देश सब जगह पहुंचाने के लिए “ब्रह्मकुण्ड से अमृतकुंड” नाम से, एक विशाल यात्रा हरिद्वार से अमृतसर तक निकाली जिसमें सारे भारत से लगभग एक हजार संतों की भागीदारी रही। इस यात्रा से लोगों में व्याप्त भय कम हुआ तथा समरसता का वातावरण बना। 70 व 80 के दशक में पंजाब के तनावपूर्ण वातावरण तथा 1984 में श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दिल्ली, कानपुर, बोकारो इत्यादि में सिखों के नरसंहार के कारण जब भाईचारे की परम्परागत कडियाँ तनाव महसूस करने लगीं तब चिरंजीव सिंह जी ने सिख नेताओं और संतों के साथ मिलकर राष्ट्रीय सिख संगत की स्थापना की। 1990 में वह इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। खालसा सिरजना के 300 वर्ष पूरे होने पर सांझीवालता का सन्देश देने के लिए भारत के विभिन्न मत सम्प्रदायों के संतों से सम्पर्क कर, श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के जन्मस्थल पटना साहिब से राजगीर बोधगया, काशी, अयोध्या से होती हुई 300 संतों की यात्रा निकाली। यह यात्रा 24 मार्च 1999 से शुरु होकर 10 अप्रैल को श्री आनंदपुर साहिब के मुख्य आयोजन, संत समागम, में सम्मिलित हुई। इस यात्रा का हरिमंदिर साहिब, दमदमा साहब, केशगढ़ साहिब जैसे सभी प्रमुख गुरुद्वारों में सम्मान सत्कार हुआ। इस यात्रा से सारे देश में एकात्मता एवं सांझीवालता का वातावरण बना। सरदार जी ने सन् 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित मिलेनियम-2, विश्व धर्म सम्मेलन में भागीदारी की व संगठन के विस्तार के लिए इंग्लैंड व अमेरिका की यात्रा की। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ गुरुतेगबहादुर पब्लिक स्कूल मॉडल टाउन दिल्ली के छात्रों द्वारा शबद गायन ‘देहि शिवा वर मोहि इहे’ द्वारा किया गया। इस अवसर पर सरदार चिरंजीव सिंह जी द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। उनको सम्मान स्वरुप 85 लाख रुपये की राशि प्रदान की गयी जो उन्होंने सिख इतिहास में शोध कार्य के लिए केशव स्मारक समिति को धरोहर स्वरूप सौंपी। जो बाद में भाई मनि सिंह गुरुमत शोध एंड अध्ययन संस्थान ट्रस्ट को हस्तांतरित कर दी गयी। इस अवसर पर संत बाबा निर्मल सिंह जी (बुड्ढा बाबा के वंशज), उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त, दिल्ली प्रान्त संघचालक भी उनके साथ मंचस्थ थे। मंच सञ्चालन दिल्ली प्रान्त सह संघचालक आलोक जी ने किया।"
गीता में विश्व शांति और विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत विद्यमान – सुरेश भय्या जी जोशी कुरुक्षेत्र (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि गीता में प्रारंभ का शब्द धर्म है और अंतिम शब्द मर्म है. हम सब एक ही चैतन्य से निकले हैं, तो फिर संघर्ष क्यों ? गीता के इसी तत्व के आधार में विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत है, जो विश्व में शांति का आधार बनेगा. श्रीमद्भगवत गीता के तत्व को समझने वालों की संख्या पर्याप्त है, परंतु उसका अनुसरण करने वालों की संख्या बढ़ानी होगी. अतः गीता को आत्मसात करना ही जीवन है. उन्होंने कहा कि महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म इन दो शक्तियों के बीच का संघर्ष था. इसी युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना दायित्व बोध करवाने का काम किया है. आज पूरी दुनिया अर्जुन रूपी विशाद रोग से ग्रस्त है और उस रोग से मुक्ति का रास्ता कृष्ण उपचार यानि श्रीमद्भागवत गीता है. आज जिस तरह से दुनिया में निराशा व विषाद का माहौल है, ऐसे में श्रीमदभागवत गीता के तत्व ज्ञान की आवश्यकता है. गीता में मनुष्य के मन बुधि में से निराशा निकालने का सामर्थ्य है. श्रीमद्भागवतगीता विश्व का मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ है. भारत दुनिया में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाए, इसके लिए गीता को प्रत्येक व्यक्ति को अपने आचरण में अपनाना जरूरी है. श्रीमद्भागवत गीता हमें प्रेरणा देती है. एक आदर्श व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करती है. आत्मज्ञान पैदा करती है और एक दूसरे से जुड़़ना सिखाती है. इस सद्भाव व समरसता से ही हम दुनिया को सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और विश्व को एक मंच पर ला सकते है. सरकार्यवाह कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में गीता जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि गीता प्रत्येक व्यक्ति को यह याद दिलाती है कि हमारा देश, समाज व राष्ट्र के प्रति धर्म क्या है. गीता कोई धार्मिक व पौराणिक ग्रंथ न होकर सार्वभौमिक, सर्वकालिक व सार्वत्रिक ग्रंथ है. दुनिया में शान्ति के प्रयासों के लिए मानव समूह को गीता के मार्ग पर चलना पड़ेगा. हमें अपने व्यक्तिगत जीवन में भी अहंकार व अपेक्षाओं से मुक्त होना होगा. अहंकार व अपेक्षाएं ही सभी समस्याओं की जड़ हैं. श्रीमद्भागवत गीता मानसिक विकृतियों को दूर करता है. भारत के पास क्षमताओं का अपार भंडार है. उन्होंने सभी से आह्वान किया कि वे सभी अपने जीवन में गीता को अपनाएं और उसे अपने आचरण में लाएं. जीवन को जीने का यही सबसे बेहतर तरीका है. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आडिटोरियम हॉल में शुक्रवार संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग तथा संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान की ओर से आयोजित एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश व दुनियाभर से आए विद्वानों ने श्रीमद्भागवत गीता के सूत्रों की अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी, उर्दू व फारसी में व्याख्या की. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार जी ने कहा कि सम्मान व समरसता का रास्ता श्रीमद्भागवत गीता से निकलता है. गीता सभी प्रकार की चुनौतियों से निकलने का रास्ता दिखाती है. गीता ने दुनिया को आलौकित किया है. यह निर्विवाद, सर्वमान्य व लोक कल्याणकारी महान ग्रंथ है. बीकानेर से आए स्वामी संवित सोमगिरी जी महाराज ने कुरुक्षेत्र की लोक संस्कृति को नमन करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत गीता की सार्वभौम प्रासंगिकता के विषय में हम तभी कुछ समझ सकते हैं, अगर हम एक शिष्य व शिशु का भाव जीवन में रखते हैं. कृष्ण को जानने के लिए व श्रीमद्भागवत गीता को समझने के लिए शास्त्र के प्रति श्रद्धा होना जरूरी है. गीता वेदों का सार है. गीता को समझने से पहले व्यक्ति के लिए यह जरूरी है कि उसकी भगवान के प्रति धारणा क्या है. गीता में जीवन का व्यवहारिक दर्शन है. श्रीमद्भागवत गीता ब्रह्म विद्या, योग विद्या व शास्त्र विद्या है. जीवन को समझने के लिए श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन जरूरी है. जीवन में कर्मयोग का संदेश सबसे महत्वपूर्ण है. कर्मयोग के लिए श्रीमद्भागवत गीता को आचरण में लाना जरूरी है. राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान दिल्ली के मोहम्मद हनीफ खान शास्त्री ने कहा कि गीता से मेरा 40 वर्ष पुराना सम्बंध है. दुनिया में सभी को गीता पढ़नी चाहिए. इस्लाम को समझने के लिए भी गीता का अध्ययन जरूरी है. इस्लाम का अर्थ समर्पण व शान्ति है और इसका पूरा सार श्रीमद्भागवत गीता में है. दुनिया से आतंकवाद व उग्रवाद को खत्म करने के लिए श्रीमद्भागवत गीता को जीवन में अपनाने की जरूरत है. संत आचार्य विवेकमुनि ने कहा कि गीता का ज्ञान 5151 वर्ष पूर्व जितना उपयोगी था, आज वह उससे ज्यादा प्रासंगिक व उपयोगी है. आज हर व्यक्ति का जीवन कुरुक्षेत्र बना हुआ है. जीवन में हताशा, निराशा व उदासी है. गीता विशाद से मुक्ति का रास्ता है. गीता हमें सर्वश्रेष्ठता की ओर ले जाती है. जीवन में कौशल को हासिल कर, आत्मजागृति पैदा कर ही हम खुद व समाज का कल्याण कर सकते हैं. भूपेन्द्र सिंह महाराज ने कहा कि आज गीता का महत्व व उपयोगिता पहले से अधिक दिखाई पड़ रहा है. अब दुर्याधन व दुःशासनों की संख्या ज्यादा है. ऐसे में श्रीमद्भागवत गीता को अपनाकर हम जीवन मूल्यों को ओर मजबूत बना सकते हैं. आज दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ है जो मानव के लिए खतरा है. इन सभी समस्याओं का हल श्रीमद्भागवत गीता में है. संगोष्ठी में राष्ट्रीय कवि गजेन्द्र सिंह चौहान ने बना लो गीता जीवन गीत व गंगा की कल-कल सीने में गाकर पूरे माहौल को गीतामय कर दिया. इस संगोष्ठी के निदेशक प्रो. ललित कुमार गौड़, संयोजक डॉ. सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने बताया कि संगोष्ठी के तहत सायंकालीन सत्र में श्रीगीता विचार तत्व सत्र व श्रीगीता पंडित परिषद का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर से गीता मनीषियों ने भाग लिया.