Tuesday, August 15, 2017

*Statement issued by Dr. Manmohan Vaidya on 15th Agust 2017* Poojaneeya SarSanghachalak Dr.Mohanji Bhagwat was invited by the management of Karnakayamman Higher Secondary school, Palakkad, Kerala, to participate in the golden jubilee celebrations of the school and Independence Day celebrations. At 11 pm of 14th August 2017, the headmaster of the school received a notice from the District Collector stating that only the institutional heads or an elected representative can unfurl the national flag in the school. It is however, learnt that no other school had been given similar information.  After due consultations, the school authorities decided that they will proceed as planned and that Sarsanghchalakji must exercise his constitutional rights. Dr.Mohanji Bhagwat hoisted the flag along with other institutional heads of the school.  We condemn such brazen attempts by the CPI-M led government of Kerala to deny the basic citizen rights of celebrating Independence Day and their continuous attempts to poison the state of Kerala with divisive politics.  *Dr. Manmohan Vaidya* *Akhil Bharatiya Prachar Pramukh* *Rashtriya Swayamsevak Sangh*

Wednesday, August 9, 2017

https://youtu.be/zp4MXCx-eb0 https://youtu.be/uAYYfPkioN8 Kerela

Tuesday, August 8, 2017

Request all to join a protest march against brutal killing of RSS Swayamsevak in Kerala by the Marxist communist on 9 th Aug 4.30 pm Jantar Mantar New Delhi, pls use #Whereareyou to tweet

Tuesday, August 1, 2017

RSS-Vagish Issar: स्वदेशी भाव के बिना कोई भी साहित्य अधूरा - कृष्णगो...

RSS-Vagish Issar: स्वदेशी भाव के बिना कोई भी साहित्य अधूरा - कृष्णगो...: स्वदेशी भाव के बिना कोई भी साहित्य अधूरा - कृष्णगोपाल जी नई दिल्ली, 1 अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री कृष्णगोपाल ने आज ...
स्वदेशी भाव के बिना कोई भी साहित्य अधूरा - कृष्णगोपाल जी नई दिल्ली, 1 अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री कृष्णगोपाल ने आज साहित्य में स्वदेश भाव विषय पर चर्चा करते हुए कहा शकों और हूणों ने भी भारत पर आक्रमण किया लेकिन भारतीय साहित्यकारों के विचारों से प्रभावित होकर वे देश में ही समाहित हो गए. इसके बाद 12वीं शताब्दी में देश पर आक्रमण करने वाले आक्रमणकारियों का बौद्धिक स्तर उस तरह का नहीं था, वे असहिष्णु थे, वे सिर्फ अपनी बात को ही सब कुछ समझते थे. उन्होंने कहा कि ये दुर्लभ संयोग है कि भारत में हुए अधिकतर गुरु साहित्यकार भी थे, योद्धा भी थे, अच्छे शासक भी थे और संत भी थे. भारतीय जनमानस पर सबसे अधिक प्रभाव श्री रामचरितमानस ने डाला. जिसका प्रभाव लोगों में साफ देखा जा सकता है. इसलिए कोई भी साहित्य स्वदेशी भाव के बिना अधूरा है. वह इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्धघाट्न सत्र में बोल रहे थे. उन्होंने क्षेत्रीय साहित्यकारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि देश को एक करने में क्षेत्रीय साहित्यकारों ने बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. समय-समय पर अपने साहित्य में प्रांत कि बजाय देश को प्राथमिकता देते रहे हैं. ये साहित्यकारों की ही देन है जिसने देश को 900 सौ वर्षों तक बचाकर रखा. आनंदमठ का जिक्र करते हुए श्री कृष्णगोपाल ने कहा कि लोग आजादी के समय वन्दे मातरम गीत गाते-गाते फ़ांसी पर झूलने को तैयार रहते थे और क्रांतिकारियों की टोली में शामिल हो जाते थे. कार्यक्रम में बतौर वक्ता कृष्णगोपाल जी ने कहा लोगों की अच्छी इच्छाओं से राष्ट्र उत्पन्न होता है. हम सभी का जन्म देश के विभिन्न राज्यों में कहीं न कहीं हुआ है लेकिन बोलते सभी भारत माता की ही जय हैं. अंग्रेज कहते हैं कि हमने भारत को एक किया है इससे पहले भारत विभिन्न रियासतों में विभक्त था, ऐसा नहीं है हजारों साल पहले महाभारत में संजय ने, कालिदास ने अपने महाकाव्य मेघदूत में इसके अलावा विष्णु पुराण और अन्य पुराणों में भी किसी न किसी रूप में भारत का नाम लिया गया. कोई भी साहित्य जब तक अधूरा रहेगा जब तक उसमें भारत का नाम नहीं लिया गया हो.