Friday, August 5, 2016

मा.दत्तात्रय जी होसबले- (मा.सहसरकार्यवाह, रा.स्व. संघ) बिलियर्ड खिलाड़ी गीत शेट्टी की पुस्तक (सक्सेस वर्सिस जॉय) का उदाहरण देते हुए कहा कि शेट्टी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि जब वह बिलियर्ड के पहली बार विश्व विजेता बने तो उन्हें बड़ा धन मिला, सम्मान मिला, उन्हें कई जगह बुलाया गया। दूसरी बार वे प्रतियोगिता में हार गए। उनके मन में अंतर्द्वंद्व चलता रहा। अंत में वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मैं सफलता के लिए खेल को खेला इसलिए हार गया। मैंने खेल का आनंद नहीं लिया। इसके बाद उन्होंने मन में धारणा बनाई कि वे सिर्फ आनंद के लिए खेलेंगे। उन्होंने ऐसा सोचा और खेले, फिर वे जीत गए। वे नौ बार विश्वविजेता बने। इसलिए कार्य जब करें तो सफलता के लिए नहीं, बल्कि आनंद के लिए करें। अपना संघ कार्य ईश्वरीय कार्य है। इसलिए संघ कार्य भी हम भगवान के विराट रूप का आंनद लेते हुए अपने मन के आंनद लिए करे न की संघ का दायित्व मेरी डयूटी है। दायित्व यानि जिम्मेवारी। जैसे अपने परिवार में हम सब दायित्व का कोई न कोई दायित्व तय है ताकि घर रुपी संस्था हम व्यवस्थित रूप से चला सके इसी प्रकार संघ का दायित्व भी हमारी ड्यूटी नही हमारी समाज के प्रति हमारी भूमिका है। सभी हिन्दू आपस में भाई भाई है सारा समाज मेरे परिवार सम है इसलिए अपने इस विशाल समाज हेतु संगठन द्वारा मेरा जो भी दायित्व तय होगा मैं उसका निर्वाहन करूँगा ऐसा संकल्प ऐसा भाव ले कर अपने मन के आंनद के लिए संघ का काम करेगे तो फिर संघ का काम बोझ न लग कर आत्मिक शांति देने वाला लगेगा।
दिल्ली वाला सर गंगाराम अस्पताल बाद में बना, लाहौर वाला पहले बन गया था। हालांकि दोनों की नींव एक ही साल १९२१ में सर गंगाराम ने रखी थी लेकिन सर गंगाराम की प्राथमिकता लाहौर वाले अस्पताल को लेकर थी। दिल्ली वाला अस्पताल नेहरू जी की कोशिशों से १९५४ में शुरू हुआ जबकि लाहौर का सर गंगाराम अस्पताल उसके बहुत पहले से लोगों का इलाज कर रहा था। जाहिर है, लाहौर से सर गंगाराम का विशेष लगाव था क्योंकि यह उनकी मातृभूमि थी। सर गंगाराम वैश्य समाज से थे और लाहौर के पास एक गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता ने उन्नीसवीं सदी में ही उन्हें सिविल इंजिनियरिंग की पढ़ाई करवाई। उन्हें देश के एकमात्र इंजीनियरिंग कालेज रुड़की में पढ़ने के लिए भेजा। और जब सर गंगाराम पढ़कर वापस लौटे तो उन्होंने पहला काम जो हाथ में लिया वह लाहौर का पुनर्निर्माण था। आज जो लाहौर दुनिया को दिखता है उस नये लाहौर का पूरा डिजाइन सर गंगाराम ने ही तैयार किया और लाहौर की कमोबेश हर ऐतिहासिक इमारत सर गंगाराम की डिजाइन थी। वे उसी तरह नये लाहौर के आर्किटेक्ट हैं जैसे लुटियंस ने नई दिल्ली बनाई या फिर कार्बुजिए ने चंडीगढ़। लाहौर में सीवर लाइन से लेकर पानी की सप्लाई तक सबकी बुनियाद लाहौर शहर में पहली बार सर गंगाराम ने ही रखी। लेकिन बंटवारा हुआ तो सबसे पहला हमला गंगाराम की आत्मा पर ही हुआ। मन्टो अपनी एक कहानी में लिखते हैं कि बलबाई मुसलमानों की भीड़ माल रोड पर सर गंगाराम की मूर्ति के सामने पहुंची और उन पर कालिख मल दी। जूतों की माला पहना दी और मूर्ति को गिरा दिया। मूर्ति गिराते हुए एक बलबाई पुलिस की गोली से घायल हो गया तो तुरंत भीड़ से एक साथ आवाज आई कि "इसे जल्दी से गंगाराम अस्पताल ले चलो।" उसे गंगाराम अस्पताल ले भी गये, उसका इलाज हुआ और वह ठीक भी हो गया लेकिन गंगाराम की वह आखिरी निशानी फिर कभी माल रोड पर पाई न जा सकी, क्योंकि नये लाहौर में बुतपरस्ती हराम थी। जिन गंगाराम ने लाहौर शहर को नया स्वरूप दिया उस लाहौर से सर गंगाराम का निशान मिटाने के लिए इस्लाम के नाम पर हर तरह के पाप किये गये। सर गंगाराम द्वारा बनाये गये देश के पहले मेडिकल कालेज बालक राम मेडिकल कालेज का नाम बदलकर फातिमा जिन्ना मेडिकल कालेज कर दिया। अभी तक तो हुआ नहीं है लेकिन मजहबी तौर पर बीमार लोग यह मांग करते रहते हैं कि गंगाराम अस्पताल का नाम बदलकर जिन्ना के नाम पर रख दिया जाए क्योंकि एक इस्लामिक मुल्क में हिन्दू नाम हराम जो है। भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों में पसरी यह वही खास बीमारी है जो धर्म को संस्कृति से अलग करती है। ये बीमार लोग समझते हैं कि धर्म बदल जाने से संस्कृति भी बदल जाती है। इसी बीमारी का सबसे गहरा लक्षण इस वक्त कश्मीर घाटी में दिख रहा है जो महाराजा हरि सिंह के बनाये महल पर तो दावा करते हैं लेकिन हरि सिंह को खारिज कर देते हैं। वैसे ही जैसे लाहौर ने सर गंगाराम अस्पताल ले लिया लेकिन सर गंगाराम को अपने इतिहास से खारिज कर दिया।