Monday, March 16, 2015

Akhil Bharatheeya Karyakarini announced,Resolution no 1,Welcoming the International Yoga Day,ABPS Resolution 2 : Education in Mother Language Akhil Bharatheeya Karyakarini announced by Mananeeya Suresh (Bhayyaji) Joshi in the Akhil Bharatheeya Prathinidhi Sabha held at Nagpur on 15 March 2015. Sarakaryavah/General Secretary – Suresh Bhaiyyaji Joshi Sahasarakaryavah/Joint Gen Sec – Suresh Soni Sahasarakaryavah/Joint Gen Sec – Dattatreya Hosabale Sahasarakaryavah/Joint Gen Sec – Dr Krishna Gopal Sahasarakaryavah /Joint Gen Sec- Bhagaiah Akhil Bharatiya Boudhik Pramukh- Swanta Ranjan Akhil Bharatiya Saha Boudhik Pramukh- Mukunda Akhil Bharatiya Sharirik Pramukh- Sunil Kulakarni Akhil Bharatiya Sah Sharirik Pramukh- Jagadish Prasad Akhil Bharatiya Sampark Pramukh- Prof. Aniruddh Deshapande Akhil Bharatiya Sah Sampark Pramukh- Arun Kumar Akhil Bharatiya Sah Sampark Pramukh – Sunil Deshapande Akhil Bharatiya Seva Pramukh – Suhas Hiremath Akhil Bharatiya Saha Seva Pramukh -Ajith Mahapatra Akhil Bharatiya Saha Seva Pramukh -Gunavanth Kothari Akhil Bharatiya Vyavastha Pramukh- Mangesh Bhende Akhil Bharatiya Saha Vyavastha Pramukh- Anil Oak Akhil Bharatiya Prachar Pramukh- Dr Manmohan Vaidya Akhil Bharatiya Saha Prachar Pramukh -J Nanda Kumar Akhil Bharatiya Pracharak Pramukh – Suresh Chandra Akhil Bharatiya Saha Pracharak Pramukh- Vinod Kumar Akhil Bharatiya Saha Pracharak Pramukh – Advaith Charan Members, Central Executive Council: 1. Madhubhai Kulakarni, 2. Shankar Lal, 3. Dr Dinesh, 4. Mukunda Rao Panashikar, 5. Indresh Kumar, 6. Sunilpad Goswamy 7. Ashok Bheri 8. Hastimal 9. Sankal Chandra Bagrecha 10. Mahavir 11. R Vanyarajan 12. V Nagraj 13. Dr. Jayanthibhai Phadesia 14. Ashok Soni 15. Dr. Bhagavati Prakash 16. Bajarangalal Gupta 17. Darshan Lal Aroda, 18. Dr. Devendra Prathap Singh 19. Siddhanath Singh 20. Ajay Kumar Nandi 21. Aseema Kumar Datta Invited Members; Central Executive Council: Balakrishna Tripathi, Sethu Madhavan, Madan Das Devi राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नागपुर में संपन्न अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2015 में पारित प्रस्ताव प्रस्ताव क्र १ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का स्वागत संयुक्त राष्ट्र की ६९वीं महासभा द्वारा प्रति वर्ष २१ जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा से सभी भारतीय, भारतवंशी व दुनिया के लाखों योग-प्रेमी अतीव आनंद तथा अपार गौरव का अनुभव कर रहे हैं। यह अत्यंत हर्ष की बात है कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने २७ सितम्बर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र की महासभा के अपने सम्बोधन में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का जो प्रस्ताव रखा उसे अभूतपूर्व समर्थन मिला| नेपाल ने तुरंत इसका स्वागत किया| १७५ सभासद देश इसके सह-प्रस्तावक बनें तथा तीन महीने से कम समय में ११ दिसम्बर २०१४ को बिना मतदान के, आम सहमति से यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया । अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहती है कि योग भारतीय सभ्यता की विश्व को देन है। 'युज' धातु से बने योग शब्द का अर्थ है जोड़ना तथा समाधि। योग केवल शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है, महर्षि पतंजलि जैसे ऋषियों के अनुसार यह शरीर मन, बुद्धि और आत्मा को जोड़ने की समग्र जीवन पद्धति है। शास्त्रों में 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:', ‘मनः प्रशमनोपायः योगः’ तथा ‘समत्वं योग उच्यते’ आदि विविध प्रकार से योग की व्याख्या की गयी है, जिसे अपनाकर व्यक्ति शान्त व निरामय जीवन का अनुभव करता है। योग का अनुसरण कर संतुलित तथा प्रकृति से सुसंगत जीवन जीने का प्रयास करने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसमें दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों के सामान्य व्यक्ति से लेकर प्रसिद्ध व्यक्तियों, उद्यमियों तथा राजनयिकों आदि का समावेश है। विश्वभर में योग का प्रसार करने के लिए अनेक संतों, योगाचार्यों तथा योग प्रशिक्षकों ने अपना योगदान दिया है, ऐसे सभी महानुभावों के प्रति प्रतिनिधि सभा कृतज्ञता व्यक्त करती है। समस्त योग-प्रेमी जनता का कर्तव्य है कि दुनिया के कोने कोने में योग का सन्देश प्रसारित करे। अ. भा. प्रतिनिधि सभा भारतीय राजनयिकों, सहप्रस्तावक व प्रस्ताव के समर्थन में बोलनेवाले सदस्य देशों तथा संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों का अभिनन्दन करती है जिन्होंने इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को स्वीकृत कराने में योगदान दिया। प्रतिनिधि सभा का यह विश्वास है कि योग दिवस मनाने व योगाधारित एकात्म जीवन शैली को स्वीकार करने से सर्वत्र वास्तविक सौहार्द तथा वैश्विक एकता का वातावरण बनेगा। अ.भा. प्रतिनिधि सभा केंद्र व राज्य सरकारों से अनुरोध करती है कि इस पहल को आगे बढ़ाते हुए योग का शिक्षा के पाठ्यक्रमों में समावेश करें, योग पर अनुसन्धान की योजनाओं को प्रोत्साहित करें तथा समाज जीवन में योग के प्रसार के हर संभव प्रयास करें । प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी देशवासियों, विश्व में भारतीय मूल के लोगों तथा सभी योग-प्रेमियों का आवाहन करती है कि योग के प्रसार के माध्यम से समूचे विश्व का जीवन आनंदमय स्वस्थ और धारणक्षम बनाने के लिए प्रयासरत रहें। ------------------------------------------------------------------------- Resolution no 1 Welcoming the International Yoga Day The proclamation by the 69th General Assembly of United Nations to observe June 21st of every year as the International Yoga Day gives countless cheers and immense pride to all the Bharatiyas, people of Bhartiya origin and millions of Yoga practioners across the globe. It becomes all the more delighting that the proposal for an International Yoga Day moved by the Honourable Prime Minister of Bharat in his UNGA speech on 27th September 2014 received an unprecedented response. Nepal supported it immediately and 175 member states co-sponsored the resolution which was adopted within a short span of less than three months on 11th December 2014, by consensus without vote. The Akhil Bharatiya Pratinidhi Sabha wishes to draw the attention to the fact that Yoga is Bharat’s civilizational contribution to the world. Derived from the root ‘Yuj’ – meaning union and samadhi, Yoga is not limited to physical exercise but is essentially a holistic way of life leading to the union of body mind, intellect and soul as envisaged by sages like Maharshi Patanjali. It is verily described in scriptures as cessation of fluctuation of mind (Yogashchittavrittinirodhah), means for calming the mind ( Manah Prashamanopayah Yogah ) and equanimity (Samatvam Yoga Uchyate) and leads one to peaceful and healthy life. Today growing number of people, be it common masses, celebrities, entrepreneurs and statesmen of different cultures across the world are adopting Yoga as a way of a balanced lifestyle tuned with nature. The ABPS notes with gratitude the contribution of scores of Saints, Yogacharyas and Yoga trainers in espousing the cause of Yoga all around the world. It is the duty of all the Yoga followers to further spread this message of Yoga far and wide across the continents. The ABPS compliments all those who facilitated the adoption of this historic resolution; Bharatiya diplomats, member states co-sponsoring and speaking in favour of it and the UN officials. It earnestly believes that the observance of Yoga Day and adopting Yoga based integral living will lead the world to a genuine environment of universal oneness and harmony. The ABPS urges the union and state governments to carry forward this initiative by introducing Yoga as a part of curriculum in education, supporting research in Yoga and make all possible efforts for promoting Yoga in social life. The Pratinidhi Sabha appeals to all the countrymen including swayamsevaks, people of Bharatiya origin and Yoga followers to endeavour earnestly for spreading Yoga to make the globe happy, healthy and sustainable. --------------------------------------------------------------- अ॰ भा॰ प्रतिनिधि सभा 2015: प्रस्ताव क्र 2 अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा प्रस्ताव 2 : मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा देश-विदेश की विविध भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करने की पक्षधर है लेकिन उसका यह मानना है कि स्वाभाविक शिक्षण व सांस्कृतिक पोषण के लिए शिक्षा, विशेष रुप से प्राथमिक शिक्षा, मातृभाषा अथवा संविधान स्वीकृत प्रादेशिक भाषा के माध्यम से ही होनी चाहिए. भाषा केवल संवाद की ही नहीं अपितु संस्कृति एवं संस्कारों की भी संवाहिका है. भारत एक बहुभाषी देश है. सभी भारतीय भाषाएँ समान रूप से हमारी राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक अस्मिता की अभिव्यक्ति करती हैं. यद्यपि बहुभाषी होना एक गुण है किंतु मातृभाषा में शिक्षण वैज्ञानिक दृष्टि से व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है. मातृभाषा में शिक्षित विद्यार्थी दूसरी भाषाओं को भी सहज रूप से ग्रहण कर सकता है . प्रारंभिक शिक्षण किसी विदेशी भाषा में करने पर जहाँ व्यक्ति अपने परिवेश, परंपरा, संस्कृति व जीवन मूल्यों से कटता है वहीं पूर्वजों से प्राप्त होने वाले ज्ञान, शास्त्र, साहित्य आदि से अनभिज्ञ रहकर अपनी पहचान खो देता है. महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर, श्री माँ, डा. भीमराव अम्बेडकर, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे मूर्धन्य चिंतकों से लेकर चंद्रशेखर वेंकट रामन,प्रफुल्ल चंद्र राय, जगदीश चंद्र बसु जैसे वैज्ञानिकों, कई प्रमुख शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों ने मातृभाषा में शिक्षण को ही नैसर्गिक एवं वैज्ञानिक बताया है. समय-समय पर गठित शिक्षा आयोगों यथा राधाकृष्णन आयोग, कोठारी आयोग आदि ने भी मातृभाषा में ही शिक्षा देने की अनुशंसा की है. मातृभाषा के महत्व को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भी समस्त विश्व में 21 फरवरी को मातृभाषा-दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है. प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित समस्त देशवासियों का आवाहन करती है कि भारत के समुचित विकास, राष्ट्रीय एकात्मता एवं गौरव को बढ़ाने हेतु शिक्षण, दैनंदिन कार्य तथा लोक-व्यवहार में मातृभाषा को प्रतिष्ठित करने हेतु प्रभावी भूमिका निभाएँ. इस विषय में परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण है. अभिभावक अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा अपनी ही भाषा में देने के प्रति दृढ़ निश्चयी बनें. अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा यह भी आवाहन करती है कि केन्द्र सरकार एवं राज्य-सरकारें अपनी वर्तमान भाषा संबंधी नीति का पुनरावलोकन कर प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा अथवा संविधान स्वीकृत प्रादेशिक भाषा में देने की व्यवस्था सुनिश्चित करें तथा शिक्षा के साथ-साथ प्रशासन व न्याय-निष्पादन भारतीय भाषाओं में करने की समुचित पहल करें. ------------------------------------------------------------------------- ABPS Resolution 2 : Education in Mother Language Akhil Bharatiya Pratinidhi Sabha is fully supportive of study of various languages including foreign languages but it is its considered opinion that for natural learning and to enrich cultural moorings, the education, particularly elementary education should be in mother language or in state languages recognised in our Constitution. Language is not only the medium of communication but it is also a carrier of culture and value system. Bharat is a multilingual country. All the Bharatiya languages equally reflect national and cultural pride of our country. Although it is a merit to be multilingual but it is scientifically expedient to impart education in mother language for developing the personality. A student educated in mother language can easily grasp other languages as well. A person having elementary education in a foreign language, gets alienated from his surroundings, traditions, culture and values of life, at the same time one also loses his identity, remaining ignorant of ancient knowledge, science and literature. Eminent thinkers like Mahamana Madanmohan Malaviya, Mahatma Gandhi, Ravindranath Thakur, Sri Maa, Dr. Bhimrao Ambedkar, Dr. Sarvapalli Radhakrishnan and scientists like Chandrashekhar Venkat Raman, Prafulla Chandra Ray, Jagdish Chandra Basu and several prominent educationists and psychologists have opined that it would be both, natural and scientific to impart education in mother language. Various commissions constituted from time to time such as Radhakrishnan Commission, Kothari Commission etc. have also recommended for imparting education in mother language. Taking note of the significance of mother language, the United Nations also decided to observe 21st February as Mother Language Day for whole of the world. ABPS calls upon the countrymen, including swayamsevaks to play an effective role to establish the dignity of the mother language in education, day-to-day working and public affairs to achieve all-round development, national integrity and pride. In this regard, family has an important role. Parents should have a firm resolve to impart elementary education to their children in their own language. ABPS calls upon the Union Government and State Governments to review their present language policies and ensure effective system to impart education in mother language or in constitutionally recognised state languages and simultaneously take initiative for use of Bharatiya languages in education, administration and delivery of justice. ------------------------------------------------------------------ Vagish Issar (Ivsk Delhi) 09810068474 (sarve bhavantu sukhinah, sarve santu niramaya; sarve bhadrani pashyantu, ma kashchit dukkh bhagbhavet}

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