Sunday, April 17, 2016

17-4/2016, अंबेडकर जी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उनको श्रद्धा सुमन अर्पित नई दिल्ली। बाबा साहेब भीमराव करने के लिए भिन्न-भिन्न तरह की घोष रचनाओं का वादन कर पथ संचलन निकाला गया। मुख्य कार्यक्रम सायं करनैल सिंह स्टेडियम में सम्पन्न हुआ। तीन अलग स्थानों से घोष विभाग के लगभग 1600 स्वयंसेवको ने भाग लिया । प्रमुख बाज़ारो में समाज के बड़ी संख्या में घोष का आनंद लिया एवं पुष्प वर्षा से उनका स्वागत किया। पश्चात् सभी स्वयं सेवक कर्नेल सिंह स्टेडियम पहुँचे।स्टेडियम में बहुत बड़ी संख्या में समाज के विभिन्न क्षेत्रो के बंधू /भगनिओ एवं स्वयं सेवको ने घोष कार्यक्रम देखा एवं सर कार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल जी के विचार सुने । हिमालय से कन्याकुमारी तक, कच्छ से कामरूप तक अपना यह एक देश है, यहां रहने वाला एक जन है। बिना किसी भेदभाव के एक समरस समाज हम खड़ा करें यह इस कार्यक्रम का संकल्प था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डाॅ कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि अम्बेडकर जी के जन्म के समय देश 700-800 वर्षो की पराधीनता से स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहा था दूसरी ओर अपने ही समाज के अन्दर एक लम्बे संघर्ष और पराधीनता के कारण अनेक प्रकार की कुरीतियां आ गईं। अनेक अच्छी बातें छूट गईं और जो अनुपयोगी था वह हमारे साथ में आ गया। संघर्ष लम्बा था देश एक बड़ी कालरात्रि को देख कर आगे बढ़ा था। बाहरी आक्रमणों के समय प्राणों की रक्षा मूल्यवान थी किसी भी तरह से प्राण बच जाएं, हमारे देश में महिलाओं में पर्दा व्यवस्था आ गई, हमारे यहां छुआ-छूत नहीं थी वह भी आ गई। वेद उपनिशदों में अस्पर्षयता का उल्लेख नहीं है, भगवान बुद्ध के समय भी अस्पर्षयता नहीं थी, ऊंच नीच की भावना थी और इसके विरुद्ध भगवान बुद्ध ने संघर्ष किया। बुद्ध ने कहा था कि जन्म के आधार पर कोई व्यक्ति छोटा-बड़ा नहीं होता। लेकिन जब देश विदेशिवो का गुलाम हो गया तो सामाजिक व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो गईं, टूट गईं। लोग अपने आपको बचाने की फिक्र में छोटे-छोटे दायरे में सिकुड़ने लगे और जातियां और उपजातियां बढ़ने लगीं। पड़ोस में रहने वाले व्यक्ति को छूने से भी पाप लगता है ऐसी धारणाएं समाज में बन गईं। यह वो काल था जब लोग दूसरे लोगों की परछाइयों के छूने से भी डरते थे कि पाप न लग जाए। इस व्यवस्था के खिलाफ समाज में संघर्ष चले, जब ऐसी र्दुव्यवस्थाएं आती हैं तो हिन्दू समाज में कोई न कोई समाज सुधारक पैदा होता है। वह समाज को कुरीति से दूर निकालकर ले आता है। मौलिक सिद्धान्त, दर्शन को सम्भालकर समाज को फिर उस खूंटे में लाकर के बांधता है। भगवान बुद्ध ने भी ऐसा काम किया था। कबीर, रविदास, गुरुनानक, महात्मा फुले ने भी यही काम किया और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने भी यही काम किया। डाॅ बाबा साहेब ने बचपन से उस अव्यवस्था के कारण बहुत दुख झेले व स्थान-स्थान पर अपमानित हुए। अंबेडकर जी ने समाज से भेदभाव दूर करने के लिए पश्चमी देशो की तरह कभी वर्ग संघर्ष को नहीं अपनाया जिसमें लाखों लोग मारे गए थे। उन्होंने बुद्ध के मार्ग पर चलते हुए जो दर्शन महात्मा फुले ने दिया, गुरुनानक, कबीर, रविदास ने दिया उसी दर्शन आगे ले जाते हुए उन्होंने राष्ट्र की एकता बरकरार रखते हए शोषित समाज को उनके अधिकार दिलवाए। इस मौके पर सभा की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत न्यूक्लीयर फिजिक्स के प्रोफेसर पी डी सहारे (भौतिकी एवं खगोल भौतिकी विभाग) ने भी अंबेडकर जी के जीवन पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर दिल्ली प्रान्त संघचालक श्री कुलभूषण आहूजा तथा सह संघचालक श्री आलोक कुमार उपस्थित थे ।

No comments:

Post a Comment