Friday, October 6, 2017

राष्ट्रहित का गला घोंट कर छेद न करना थाली में। मिट्टी वाले दीये जलाना  .. अबकी बार दीवाली में। देश के धन को देश में रखना,  नहीं बहाना नाली में मिट्टी वाले दीये जलाना  अबकी बार दीवाली में। बने जो अपनी मिट्टी से, वो दीये बिके बाजारों में, छिपी है वैज्ञानिकता अपने सभी तीज-त्योहारों में। चायनीज झालर से आकर्षित कीट पतंगे आते हैं, जबकि दीये में जलकर बरसाती कीड़े मर जाते हैं। कार्तिक और अमावस वाली,  रात न सबकी काली हो। दीये बनाने वालों की अब  खुशियों भरी दीवाली हो।  अपने देश का पैसा जाए,  अपने भाई की झोली में। गया जो पैसा दुश्मन देश, तो लगेगा राइफल की गोली में। देश की सीमा रहे सुरक्षित चूक न हो रखवाली में। मिट्टी वाले दीये जलाना अबकी बार दीवाली में। 

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